भैया! मुझको भी, लिखना-पढ़ना, सिखला दो। क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी, गिनती भी बतला दो।। पढ़ लिख कर मैं, मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी। दुनिया भर में, बापू जैसा अपना नाम करूँगी।। रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे, मैं भी उठा करूँगी। पुस्तक लेकर पढ़ने में, मैं संग में जुटा करूँगी।। बस्ता लेकर विद्यालय में, मुझको भी जाना है। इण्टरवल में टिफन खोल कर, खाना भी खाना है।। छुट्टी में गुड़िया को, ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी। उसके लिए पेंसिल और, इक कापी भी लाऊँगी।। |
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Sunday, January 22, 2012
"विद्यालय में मुझको भी जाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पढ़ना-लिखना,
बाल कविता
Friday, January 20, 2012
"देहरादून नगर बाबा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
पापा की लग गई नौकरी, देहरादून नगर बाबा। कैसे भूलें प्यार आपका, नहीं सूझता कुछ बाबा।। छोटा घर है, नया नगर है, सर्द हवा चलती सर-सर है, बन जायेंगे नये दोस्त भी, अभी अकेले हैं बाबा। प्यारे चाचा-दादी जी की, हमको याद सताती है, विद्यालय की पीली बस भी, गलियों में नहीं आती है, भीड़ बहुत है इस नगरी में, मँहगाई भी है बाबा। आप हमारे लिए रोज ही, रचनाएँ रच देते हो, बच्चों के मन की बातों को, सहज भाव से कहते हो, ब्लॉग आपका बिना नेट के, कैसे हम देखें बाबा। छोटी बहना प्राची को तो, बाबा-दादी प्यारी थी, छोटी होने के कारण वो, सबकी बहुत दुलारी थी। बहुत अकेली सहमी सी है, गुड़िया रानी जी बाबा। गर्मी की छुट्टी होते ही, अपने घर हम आयेंगे, जो भी लिखा आपने बाबा, पढ़कर वो हम गायेंगे, जब भी हो अवकाश आपको, मिलने आना तुम बाबा। |
Monday, January 9, 2012
"तितली रानी कितनी सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मन को बहुत लुभाने वाली, तितली रानी कितनी सुन्दर। भरा हुआ इसके पंखों में, रंगों का है एक समन्दर।। उपवन में मंडराती रहती, फूलों का रस पी जाती है। अपना मोहक रूप दिखाने, यह मेरे घर भी आती है।। भोली-भाली और सलोनी, यह जब लगती है सुस्ताने। इसे देख कर एक छिपकली, आ जाती है इसको खाने।। आहट पाते ही यह उड़ कर, बैठ गयी चौखट के ऊपर। मेरा मन भी ललचाया है, मैं भी देखूँ इसको छूकर।। इसके रंग-बिरंगे कपड़े, होली की हैं याद दिलाते। सजी धजी दुल्हन को पाकर, |
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