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लाल रंग के सुमन
सुहाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
रूप अनोखा, गन्ध नहीं
है,
कागज-कलम निबन्ध नहीं
है,
उपवन से सम्बन्ध नहीं
है,
गरमी में हैं खिलते
जाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
भँवरों की गुंजार नहीं
है,
शीतल-सुखद बयार नहीं
है,
खिलने का आधार नहीं
है,
केवल लोकाचार निभाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
कुदरत की है शान
निराली,
गुलमोहर पर छाई लाली,
वनमाली करता रखवाली,
पथिक तुम्हारी छाया
पाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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Saturday, May 9, 2020
बालगीत "गुलमोहर पर छाई लाली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गुलमोहर पर छाई लाली,
बालगीत
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुंदर सृजन सर ,गुलमोहर को देख खिलखिलाते बचपन का ही एहसास होता हैं, सादर नमन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बालगीत...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर बाल गीत।
बहुत सुन्दर बालगीत .
ReplyDeleteI want you, all of you. I want to feel you inside me, deep inside me. I want you to tell me when you’re going to cum, hear you moan my name and fuck me harder. Click here and Check me out i am getting naked here ;)
ReplyDeleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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