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Monday, March 31, 2014

"अच्छे लगते बच्चे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
"अच्छे लगते बच्चे"
बालकविता
 
चंचल-चंचल, मन के सच्चे।
सबको अच्छे लगते बच्चे।।

कितने प्यारे रंग रंगीले।
उपवन के हैं सुमन सजीले।।
 
 
भोलेपन से भरमाते हैं।
ये खुलकर हँसते-गाते हैं।।

भेद-भाव को नहीं मानते।
बैर-भाव को नहीं ठानते।।

काँटों को भी मीत बनाते।
नहीं मैल मन में हैं लाते।।

जीने का ये मर्म बताते।
प्रेम-प्रीत का कर्म सिखाते।।

Thursday, March 27, 2014

"आँगनबाड़ी के हैं तारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"आँगनबाड़ी के हैं तारे"
 
आँगन बाड़ी के हैं तारे।
बालक हैं  ये प्यारे-प्यारे।।
 
आओ इनका मान करें हम।
सुमनों का सम्मान करें हम।।
 
बाल दिवस हम आज मनाएँ।
नेहरू जी को शीश नवाएँ।।
 
जो थे भारत भाग्य विधाता।
बच्चों से रखते वो नाता।।
 
सबसे अच्छे जग से न्यारे।
बच्चों के हैं चाचा प्यारे।।

Sunday, March 23, 2014

"देशी फ्रिज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"देशी फ्रिज"
"
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।

छोटी-बड़ी और दरम्यानी,
सजी हुई हैं सड़क किनारे।
शीतल जल यदि पीना चाहो,
ले जाओ सस्ते में प्यारे।।

इसमें भरा हुआ सादा जल,
अमृत जैसा गुणकारी है।
प्यास सभी की हर लेता है,
निकट न आती बीमारी है।।

अगर कभी बाहर हो जाना,
साथ सुराही लेकर जाना।
घर में भी औ' दफ्तर में भी,
इसके जल से प्यास बुझाना।। 

Wednesday, March 19, 2014

"स्लेट और तख़्ती" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
स्लेट और तख़्ती
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दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी,
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।। 
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फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
जेल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।।

समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।

Saturday, March 15, 2014

"खेतों में शहतूत लगाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
खेतों में शहतूत लगाओ
कितना सुन्दर और सजीला।
खट्टा-मीठा और रसीला।।
 
हरे-सफेद, बैंगनी-काले।
छोटे-लम्बे और निराले।।

शीतलता को देने वाले।
हैं शहतूत बहुत गुण वाले।।
 
 
पारा जब दिन का बढ़ जाता।
तब शहतूत बहुत मन भाता।

इसका वृक्ष बहुत उपयोगी।
ठण्डी छाया बहुत निरोगी।।
 
टहनी-डण्ठल सब हैं बढ़िया।
इनसे बनती हैं टोकरियाँ।।

रेशम के कीड़ों का पालन।
निर्धन को देता है यह धन।।
आँगन-बगिया में उपजाओ।
खेतों में शहतूत लगाओ।।

Tuesday, March 11, 2014

"देशी फ्रिज-सुराही" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"देशी फ्रिज"
"
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी।।

छोटी-बड़ी और दरम्यानी,
सजी हुई हैं सड़क किनारे।
शीतल जल यदि पीना चाहो,
ले जाओ सस्ते में प्यारे।।

इसमें भरा हुआ सादा जल,
अमृत जैसा गुणकारी है।
प्यास सभी की हर लेता है,
निकट न आती बीमारी है।।

अगर कभी बाहर हो जाना,
साथ सुराही लेकर जाना।
घर में भी औ' दफ्तर में भी,
इसके जल से प्यास बुझाना।। 

Friday, March 7, 2014

"घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
घर भर की तुम राजदुलारी
प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी,
बिटिया तुम हो कितनी प्यारी।
मोहक है मुस्कान तुम्हारी,
घर भर की तुम राजदुलारी।।

नये-नये परिधान पहनकर,
सबको बहुत लुभाती हो।
अपने मन का गाना सुनकर,
ठुमके खूब लगाती हो।।
 
निष्ठा तुम प्राची जैसी ही,
चंचल-नटखट बच्ची हो।
मन में मैल नहीं रखती हो,
देवी जैसी सच्ची हो।।

दिनभर के कामों से थककर,
जब घर वापिस आता हूँ।
तुमसे बातें करके सारे,
कष्ट भूल मैं जाता हूँ।।

मेरे घर-आगँन की तुम तो,
नन्हीं कलिका हो सुरभित।
हँसते-गाते देख तुम्हें,
मन सबका हो जाता हर्षित।।

Monday, March 3, 2014

"सच्चा भारत" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
सच्चा भारत
सुन्दर-सुन्दर खेत हमारे।
बाग-बगीचे प्यारे-प्यारे।।

पर्वत की है छटा निराली।
चारों ओर बिछी हरियाली।।

छटा अनोखी बिखराता है।।
सूरज किरणें फैलाता है।

तम हट जाता, जग जगजाता।
जन दिनचर्या में लग जाता।।

चहक उठे हैं घर-चौबारे।

महक उठे कच्चे-गलियारे।।
गइया जंगल चरने जाती।

हरी घास मन को ललचाती।।

 नहीं बनावट, नहीं प्रदूषण।
यहाँ सरलता है आभूषण।।

खड़ी हुई मजबूत इमारत।
यह है अपना सच्चा भारत।।