भैया! मुझको भी, लिखना-पढ़ना, सिखला दो। क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी, गिनती भी बतला दो।। पढ़ लिख कर मैं, मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी। दुनिया भर में, बापू जैसा अपना नाम करूँगी।। रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे, मैं भी उठा करूँगी। पुस्तक लेकर पढ़ने में, मैं संग में जुटा करूँगी।। बस्ता लेकर विद्यालय में, मुझको भी जाना है। इण्टरवल में टिफन खोल कर, खाना भी खाना है।। छुट्टी में गुड़िया को, ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी। उसके लिए पेंसिल और, इक कापी भी लाऊँगी।। |
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Sunday, January 22, 2012
"विद्यालय में मुझको भी जाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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प्यारी और खूबसूरत रचना ...
ReplyDeletebachchon ki tarah masoom komal si kavita.
ReplyDeleteछुट्टी में गुड़िया को,
ReplyDeleteए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।।
bal mn ki tashvir bhala blogar ki duniyan me ap se achhi kaun rekhankit kr sakata hai? bahut hi achhi post aj charchamanch pr mili badhai Maynk ji.
सुन्दर बाल कविता !
ReplyDeletesundr bal kvita bdhai
ReplyDeleteसाक्षरता पर प्रभावी बाल कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई
ReplyDeleteजय जय सुभाष !
छुट्टी में गुड़िया को,
ReplyDeleteए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।बहुत अच्छी बालकविता।
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Bahut khoob.
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