अपनी बाल कृति
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"गिलहरी"
बैठ मजे से मेरी छत पर,दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
तुमको पास बुलाने को,
मैं मूँगफली दिखलाता हूँ,
कट्टो-कट्टो कहकर तुमको,
जब आवाज लगाता हूँ,
कुट-कुट करती हुई तभी तुम,
जल्दी से आ जाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
नाम गिलहरी, बहुत छरहरी, आँखों में चंचलता है, अंग मर्मरी, रंग सुनहरी, मन में भरी चपलता है, हाथों में सामग्री लेकर, बड़े चाव से खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
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Friday, January 10, 2014
"बालगीत-गिलहरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Labels:
गिलहरी,
बालगीत,
हँसता गाता बचपन
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ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
Deleteआभार आदरणीय-
बालमनभावन, बहुत प्यारी रचना है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बाल कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (11-1-2014) "ठीक नहीं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1489" पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
Bahut sundar.
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