माँ की आराधना
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
अन्धकार को दूर भगाएँ
जागो अब हो गया सवेरा,
दूर हो गया तम का घेरा,
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
कुक्कुट कुकड़ूँकू चिल्लाया,
चिड़ियों ने भी गीत सुनाया,
आओ हम भी खिलकर गायें।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
घर-आँगन को आज बुहारें,
कभी न हिम्मत अपनी हारें,
जीने का ढंग हम सिखलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
खिड़की दरवाजों को खोलें,
वेदों के मन्त्रों को बोलें,
पूजा के हम थाल सजाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
माता की आरती उतारें,
स्वर भरकर अर्चना उचारें, ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ। मन मन्दिर में दीप जलाएँ।। |
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Monday, July 22, 2013
"मन मन्दिर में दीप जलाएँ " (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमन गुरुवर -
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
सुन्दर बालगीत!
ReplyDeleteखिड़की दरवाजों को खोलें,
ReplyDeleteवेदों के मन्त्रों को बोलें,
पूजा के हम थाल सजाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
बहुत सुंदर गीत...काश यह हमारे भीतर उतर जाए...
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।
बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteBahut sundar
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