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Friday, January 24, 2014

"पूजा के हम थाल सजाएँ " (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

माँ की आराधना
अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
अन्धकार को दूर भगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

जागो अब हो गया सवेरा,
दूर हो गया तम का घेरा,
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

कुक्कुट कुकड़ूँकू चिल्लाया,
चिड़ियों ने भी गीत सुनाया,
नवप्रभात की खुशी मनायें।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

घर-आँगन को आज बुहारें,
कभी न हिम्मत अपनी हारें,
जीने का ढंग हम सिखलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

खिड़की दरवाजों को खोलें,
वेदों के मन्त्रों को बोलें,
पूजा के हम थाल सजाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

माता की आरती उतारें,
स्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

4 comments:


  1. मंगलवार 04/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

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  2. बहुत सुंदर......जय माँ सरस्वती....शुभ कामनाए

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