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अब हरियाली तीज आ रही, 
मम्मी मैं झूलूँगी झूला। 
देख फुहारों को बारिश की, 
मेरा मन खुशियों से फूला।। 
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कई पुरानी भद्दी साड़ी, 
बहुत आपके पास पड़ी हैं। 
इतने दिन से इन पर ही तो, 
मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।। 
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इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो, 
मेरा झूला बन जाएगा। 
मैं बैठूँगी बहुत शान से, 
भइया मुझे झुलायेगा।। 
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Friday, July 24, 2020
बालकविता "हरियाली तीज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
बालकविता,
हरियाली तीज
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