गुन-गुन करता भँवरा आया। कलियों फूलों पर मंडराया।। यह गुंजन करता उपवन में। गीत सुनाता है गुंजन में।। कितना काला इसका तन है। किन्तु बड़ा ही उजला मन है। जामुन जैसी शोभा न्यारी। खुशबू इसको लगती प्यारी।। यह फूलों का रस पीता है। मीठा रस पीकर जीता है।। |
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Friday, February 3, 2012
‘‘गुन-गुन करता भँवरा आया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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कितना काला इसका तन है।
ReplyDeleteकिन्तु बड़ा ही उजला मन है.isliye to gungunata rhta hai .bahut achcha.
मजा आ गया
ReplyDeleteयह गुंजन करता उपवन में।
ReplyDeleteगीत सुनाता है गुंजन में।।
bahut sundar ....
आप सचमुच बहुत ही सुन्दर लिखते हैं ..हम लोगों के लिए प्रेरणा हैं ..आपसे सीखें ये हमारा अहोभाग्य होगा..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
Wah wah.
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