धक्का-मुक्की रेलम-पेल। छुक-छुक करती आयी रेल।। इंजन चलता सबसे आगे। पीछे -पीछे डिब्बे भागे।। हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता। पटरी पर यह तेज दौड़ता।। जब स्टेशन आ जाता है। सिग्नल पर यह रुक जाता है।। जब तक बत्ती लाल रहेगी। इसकी जीरो चाल रहेगी।। हरा रंग जब हो जाता है। तब आगे को बढ़ जाता है।। बच्चों को यह बहुत सुहाती। नानी के घर तक ले जाती।। सबके मन को भाई रेल। आओ मिल कर खेलें खेल।। धक्का-मुक्की रेलम-पेल। छुक-छुक करती आयी रेल।। |
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Thursday, February 16, 2012
"छुक-छुक करती आयी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुंदर बाल रचना .......
ReplyDeletebachpan ki relgadi ki chhavi aankhon me utar aayee.
ReplyDeleteSundar.
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