मैं अपनी मम्मी-पापा के, नयनों का हूँ नन्हा-तारा। मुझको लाकर देते हैं वो, रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।। मुझे कार में बैठाकर, वो रोज घुमाने जाते हैं। पापा जी मेरी खातिर, कुछ नये खिलौने लाते हैं।। मैं जब चलता ठुमक-ठुमक, वो फूले नही समाते हैं। जग के स्वप्न सलोने, उनकी आँखों में छा जाते हैं।। ममता की मूरत मम्मी-जी, पापा-जी प्यारे-प्यारे। मेरे दादा-दादी जी भी, हैं सारे जग से न्यारे।। सपनों में सबके ही, सुख-संसार समाया रहता है। हँसने-मुस्काने वाला, परिवार समाया रहता है।। मुझको पाकर सबने पाली हैं, नूतन अभिलाषाएँ। क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा, उनकी सारी आशाएँ।। मुझको दो वरदान प्रभू! मैं सबका ऊँचा नाम करूँ। मानवता के लिए जगत में, अच्छे-अच्छे काम करूँ।। |
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Wednesday, February 22, 2012
"मुझको दो वरदान प्रभू!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बाल कविता,
बालक की इच्छा
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क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
ReplyDeleteउनकी सारी आशाएँ।। waah bahut achchi ichcha jarur pure honge....
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-798:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>
भावुक करती हुई प्यारी रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता...इच्छाएं जरूर पूरी होंगी...
ReplyDeletebahut sunder marmsparshi rachna
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय...... शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteSundar.
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