अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
बालगीत
"टर्र-टर्र टर्राने वाला"
टर्र-टर्र टर्राने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
कभी कुमुद के नीचे छिपता,
और कभी ऊपर आ जाता,
जल-थल दोनों में ही रहता,
तभी उभयचर है कहलाता,
पल-पल रंग बदलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
लगता है यह बहुत भयानक,
किन्तु बहुत है सीधा-सादा,
अगर जरा भी आहट होती,
झट से पानी में छिप जाता,
उभरी-उभरी आँखों वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
मुण्डी बाहर करके अपनी,
इधर-उधर को झाँक रहा है,
कीट-पतंगो को खाने को,
देखो कैसा ताँक रहा है,
उछल-उछल कर चलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
(छायांकनःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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Tuesday, February 11, 2014
"टर्र-टर्र टर्राने वाला" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
टर्र-टर्र टर्राने वाला,
बालगीत,
हँसता गाता बचपन
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very interesting poem... great wording
ReplyDeletemy new article- मैंने सुना है कि आप के ashram में महात्मा बनते हैं,मैं mahatma बनना चाहता हूँ,-
:D
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
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