अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"श्यामपट"
तीन टाँग के ब्लैकबोर्ड की,
मूरत कितनी प्यारी है।
कोकिल जैसे इस स्वरूप की,
सूरत जग से न्यारी है।
कालचक्र में बदल गया सब,
पर तुम अब भी चमक रहे हो।
समयक्षितिज पर ध्रुवतारा बन,
नित्य नियम से दमक रहे हो।
बना हुआ अस्तित्व तुम्हारा, राम-श्याम बन रमे हुए हो। विद्यालय हों या दफ्तर हों, सभी जगह पर जमे हुए हो। रंग-रूप सबने बदला है, तुम काले हो, वही पुराने। जग को पाठ पढ़ानेवाले, लगते हो जाने पहचाने। अपने श्यामल तन पर तुम, उज्जवल सन्देश दिखाते हो। भूले-भटके राही को तुम, पथ और दिशा बताते हो। हिन्दी और विज्ञान-गणित, या अंग्रेजी के हों अक्षर। नन्हें सुमनों को सिखलाते, ज्ञान तुम्ही हो जी भरकर। गुण और ज्ञान बालकों के, मन में इससे भर जाता। श्यामपटल अध्यापकगण को, सबसे अधिक सुहाता। |
समर्थक
Saturday, February 1, 2014
"श्यामपट" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
बालकविता,
श्यामपट,
हँसता गाता बचपन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut sundar ......kavi kahi se bhi kavita ki rachna kar hi lete hain ...
ReplyDelete