अपनी बाल कृति
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे"
लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!
बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!
प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!
अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको हैं दो लड्डू खाना!
तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!
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Friday, December 13, 2013
"लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बढ़िया बाल कविता -
ReplyDeleteसुन्दर कलेवा-
आभार गुरुवर
बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteलड्डू देख मुँह में पानी आ गया...
:-)
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअब प्राची ने मन में ठाना,
ReplyDeleteउसको हैं दो लड्डू खाना!
तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!
बोल श्री लड्डू गोपाल
जय लड्डू जय जय लड्डू
Munh men pani aa gaya.
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