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Tuesday, December 17, 2013

"कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता"
रोज सवेरे मैं उठ जाता।
कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता।।

कहता भोर हुई उठ जाओ।
सोने में मत समय गँवाओ।।

आलस छोड़ो, बिस्तर त्यागो।
मैं भी जागा, तुम भी जागो।।

पहले दिनचर्या निपटाओ।
फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ।।

अगर सफलता को है पाना।
सेवा-भाव सदा अपनाना।।

मुर्गा हूँ मैं सिर्फ नाम का।
सेवक हूँ मैं बहुत काम का।।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर बाल गीत कुकड़ूकूँ..

    ReplyDelete
  2. सुन्दर बाल गीत

    रोज सवेरे मैं उठ जाता।
    कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता।।

    कहता भोर हुई उठ जाओ।
    सोने में मत समय गँवाओ।।

    आलस छोड़ो, बिस्तर त्यागो।
    मैं भी जागा, तुम भी जागो।।

    पहले दिनचर्या निपटाओ।
    फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ।।

    अगर सफलता को है पाना।
    सेवा-भाव सदा अपनाना।।

    मुर्गा हूँ मैं सिर्फ नाम का।
    सेवक हूँ मैं बहुत काम का।।

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