अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
घर भर की तुम राजदुलारी
प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी,
बिटिया तुम हो कितनी प्यारी।
मोहक है मुस्कान तुम्हारी,
घर भर की तुम राजदुलारी।।
नये-नये परिधान पहनकर,
सबको बहुत लुभाती हो।
अपने मन का गाना सुनकर,
ठुमके खूब लगाती हो।।
निष्ठा तुम प्राची जैसी ही,
चंचल-नटखट बच्ची हो।
मन में मैल नहीं रखती हो,
देवी जैसी सच्ची हो।।
दिनभर के कामों से थककर,
जब घर वापिस आता हूँ।
तुमसे बातें करके सारे,
कष्ट भूल मैं जाता हूँ।।
मेरे घर-आगँन की तुम तो,
नन्हीं कलिका हो सुरभित।
हँसते-गाते देख तुम्हें,
मन सबका हो जाता हर्षित।।
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Friday, March 7, 2014
"घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
घर भर की तुम राजदुलारी,
बालकविता,
हँसता गाता बचपन
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बहुत प्यारी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर.....
:-)
वाह !:)
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