अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
स्लेट और तख़्ती
दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी,
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।।
फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
जेल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।।
समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।
bachpan ki takhti or slate slati ki yaad tazi kar di Sir ji aap ne..sulekh likhna fir gachi(multani mitti se saaf karna) Eco friendly yani sub kuch prakriti ki den or prakriti ko hi vapis kardena or yeh sub koi bhi apne dularo ko dila sakta tha ...pr ab to competition jyada hai prakriti ko nasht karne ka but silently ...
ReplyDeleteबिल्कु ल सही कहा...सारी परिपाटी बदल रही है
ReplyDeleteबहुत सुंदर. बधाई.
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