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Saturday, March 15, 2014

"खेतों में शहतूत लगाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
खेतों में शहतूत लगाओ
कितना सुन्दर और सजीला।
खट्टा-मीठा और रसीला।।
 
हरे-सफेद, बैंगनी-काले।
छोटे-लम्बे और निराले।।

शीतलता को देने वाले।
हैं शहतूत बहुत गुण वाले।।
 
 
पारा जब दिन का बढ़ जाता।
तब शहतूत बहुत मन भाता।

इसका वृक्ष बहुत उपयोगी।
ठण्डी छाया बहुत निरोगी।।
 
टहनी-डण्ठल सब हैं बढ़िया।
इनसे बनती हैं टोकरियाँ।।

रेशम के कीड़ों का पालन।
निर्धन को देता है यह धन।।
आँगन-बगिया में उपजाओ।
खेतों में शहतूत लगाओ।।

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