अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"थाली के बैंगन"
गोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है। सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा, सबको लगता प्यारा है।। कुछ होते हैं लम्बे-लम्बे, कुछ होते हैं श्वेत-धवल। कुछ होते हैं टेढ़े-मेढ़े, कुछ होते हैं बहुत सरल। सभी जगह पर थाली के बैंगन ही बिकने आते है। चापलूस लोगों से तो, सब ही धोखा खा जाते हैं। इनका भरता बना-बनाकर, चटकारे ले-लेकर खाना। किन्तु कभी अपने जीवन में, खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना।। |
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Wednesday, August 28, 2013
"थाली के बैंगन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
थाली के बैंगन,
बालकविता,
हँसता गाता बचपन
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बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
Sundar
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