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Tuesday, August 20, 2013

"भइया मुझे झुलाएगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"भइया मुझे झुलाएगा"
 
अब हरियाली तीज आ रही,
मम्मी मैं झूलूँगी झूला।
देख फुहारों को बारिश की,
मेरा मन खुशियों से फूला।।

छम-छम,छम-छम पानी बरसे,
धरती पर पसरी हरियाली।
आसमान में सजे सात रंग, 
इन्द्रधनुषकी छटा निराली।।

कई पुरानी भद्दी साड़ी,
बहुत आपके पास पड़ी हैं।
इतने दिन से इन पर ही तो,
मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।।

इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो,
मेरा झूला बन जाएगा।
मैं बैठूँगी बहुत शान से,
भइया मुझे झुलाएगा।।

2 comments:

  1. सहज सरल बाल मन के भाव उमड़े हैं इस गीत में।

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