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Monday, November 18, 2013

"झूला झूलें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"झूला झूलें"
आओ दोनों झूला झूलें।
खिड़की-दरवाजों को छू लें।।

मिल-जुलकर हम मौज मनाएँ।
जोर-जोर से गाना गाएँ।।

माँ कहती मत शोर मचाओ।
जल्दी से विद्यालय जाओ।।

मम्मी आज हमारा सण्डे।
सण्डे को होता होलीडे।।

नाहक हमको टोक रही क्यों?
हमें खेल से रही क्यो??

गीत-कहानी तो कहने दो।
थोड़ी देर हमें रहने दो।।

5 comments:

  1. नाहक हमको टोक रही क्यों?
    हमें खेल से रोक रही क्यो??

    आभार आदरणीय-

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  2. बहुत सुन्दर बाल गीत प्रस्तुति ...

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  3. नाहक हमको टोक रही क्यों?
    हमें खेल से रही क्यो??

    नाहक हमको टोक रही क्यों?
    हमें खेल से "रोक' रही क्यो??सुन्दर बाल गीत।

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