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Tuesday, November 5, 2013

"चिल्लाया है कौआ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"चिल्लाया है कौआ"
स्वर अर्चना चावजी का

काले रंग का चतुर-चपल,
पंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का, 
जोड़ा कितना प्यारा।

नजर घुमाकर देख रहे ये,
कहाँ मिलेगा खाना।
जिसको खाकर कर्कश स्वर में,
छेड़ें राग पुराना।।

काँव-काँव का इनका गाना,
सबको नहीं सुहाता।
लेकिन बच्चों को कौओं का,
सुर है बहुत लुभाता।।

कोयलिया की कुहू-कुहू,
बच्चों को रास न आती।
कागा की प्यारी सी बोली, 
इनका मन बहलाती।।

देख इसे आँगन में,
शिशु ने बोला औआ-औआ।
खुश होकर के काँव-काँवकर,
चिल्लाया है कौआ।।

4 comments:

  1. काले रंग का चतुर-चपल,
    पंछी है सबसे न्यारा।
    डाली पर बैठा कौओं का,
    जोड़ा कितना प्यारा।


    बहत सुन्दर बालगीत है।अर्थ और भाव दोनों बढ़िया।

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