अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
पंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का,
जोड़ा कितना प्यारा।
नजर घुमाकर देख रहे ये,
कहाँ मिलेगा खाना।
जिसको खाकर कर्कश स्वर में,
छेड़ें राग पुराना।।
काँव-काँव का इनका गाना,
सबको नहीं सुहाता।
लेकिन बच्चों को कौओं का,
सुर है बहुत लुभाता।।
कोयलिया की कुहू-कुहू,
बच्चों को रास न आती।
कागा की प्यारी सी बोली,
इनका मन बहलाती।।
देख इसे आँगन में,
शिशु ने बोला औआ-औआ।
खुश होकर के काँव-काँवकर,
चिल्लाया है कौआ।।
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Tuesday, November 5, 2013
"चिल्लाया है कौआ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चिल्लाया है कौआ,
पॉडकास्ट,
बालकविता,
हँसता गाता बचपन
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शुभप्रभात
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर
काले रंग का चतुर-चपल,
ReplyDeleteपंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का,
जोड़ा कितना प्यारा।
बहत सुन्दर बालगीत है।अर्थ और भाव दोनों बढ़िया।
उत्कृष्ठ !!
ReplyDeleteVaah bahut khoob
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