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Wednesday, November 27, 2013

"सूअर का बच्चा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"सूअर का बच्चा"
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।।

लोग स्वयं को साफ समझते।
लेकिन मुझको गन्दा कहते।।

मेरी बात सुनो इन्सानों।
मत अपने को पावन मानों।।

भरी हुई सबके कोटर में। 
तीन किलो गन्दगी उदर में।।

श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।

तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।

भेद-भाव नहीं मुझको आता।
मेरा दुनिया भर से नाता।।

ऊपर वाले की है माया।
मुझे मिली है सुन्दर काया।।

साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।। 

1 comment:

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