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Saturday, November 23, 2013

"बिच्छू" (डा.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"बिच्छू"
चिमटे जैसी भुजा बनी हैं,
प्यारी सी दुम धनुष-कमान।
विष से भरा दंश है घातक है,
जैसे हो जहरीला बाण।।

कमर मंथरा जैसी टेढ़ी,
परसराम जैसी आदत है।
प्रीत-रीत यह नहीं जानता,
इसको छूना ही आफत है।।

डरता नहीं किसी से है यह,
छोटा-खोटा और कृतघ्न है।
अकड-अकड़ कर चलता है यह,
अपनी ही धुन में निमग्न है।।

मन से क्रोधी, तन से तिरछा,
नहीं कहीं से यह सरल है।
दूर हमेशा रहना इससे,
बिच्छू का पर्याय गरल है।।

2 comments:


  1. सुन्दर है बाल कविता। खूब फले हैं राजनीति में सेकुलर बिच्छु

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