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Sunday, January 19, 2014

"हँसता गाता बचपन का शीर्षक गीत और भूमिका" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाजुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।

नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
नित्यप्रति कोमल पौधों पर,
स्नेह-सुधा बरसाना ।।

ये कोरे कागज के जैसे,
होते भोले-भाले।
इन नटखट गुड्डे-गुड़ियों के,
होते खेल निराले।।

भरा हुआ चंचल अखियों में,
कितना अपनापन है।
झूम-झूम कर मस्ती में,
हँसता-गाता बचपन है।।
 --
भूमिका  (डॉ.राष्ट्रबन्धु)
     डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक की लेखनी कविताओं के साथ-साथ बाल साहित्य में भी समान रूप से चलती है।मुझे इनकी पहली कृति नन्हे सुमन भी देखने का सौभाग्य मिला है और आज मुझे इनकी दूसरी बाल कृति हँसता गाता बचपन की भूमिका लिखने का अवसर मिला है।
    हँसता गाता बचपन भी नन्हे सुमन की ही भाँति श्रेष्ठ और आशाप्रद है। इसमें शास्त्रीयता की दृष्टि से छन्दों, रसों और वैज्ञानिकता का परिपालन किया गया है। जिससे उनके लेखन से आशाएँ उभरती हैं। आधुनिक विषयों पर मयंक जी अपनी लेखनी का जादू हमेशा शब्दों के माध्यम से बिखेरते हैं। मेरे विचार से इनके द्वारा वेबकैमपर हिन्दी में प्रकाशित पहली बाल रचना है।
“वेब कैम की शान निराली।
करता घरभर की रखवाली।।...
नवयुग की यह है पहचान।
वेबकैम है बहुत महान।।...”
    हँसता गाता बचपन एक ऐसी कृति है जिसमें प्राकृतिक परिवेश और बच्चों के वातावरण तथा बाल साहित्य की उद्देश्यपरक सम्भावनाएँ प्रकट होती हैं।
    इस कृति की प्रथम रचना वन्दना मॆं उन्होंने कामना की है-
“अन्धकार को दूर भगायें।
मन मन्दिर में दीप जलायें।।
जागो अब हो गया सवेरा।
दूर हो गया तम का डेरा।।
सिक्षा की हम अलख जगायें।
मन मन्दिर में दीप जलायें...।।“
    साथ ही शीर्षक गीत में तो इन्होंने कमाल ही किया है-
“हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाज़ुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।
नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
इन कोमल पौधों पर,
अपना स्नेह-सुधा बरसाना।।
ये कोरे कागज़ के जैसे,
होते भोले-भाले।
इन नटखट गुड्डे-गुड़ियों के,
होते खेल निराले।।
भरा हुआ चंचल अँखियों में,
कितना अपनापन है।
झूम-झूमकर मस्ती में,
हँसता गाता बचपन है।।“
    इस बालकृति में स्वागत गान के रूप में प्रस्तुत रचना तो उनकी कालजयी रचना है-
“स्वागतम आपका कर रहा रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत् नमन।।
भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षासदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
--
अपने आशीष से धन्य कर दो हमें,
देश को दें दिशा ऐसा वर दो हमें,
अपने कृत्यों से लायें वतन में अमन।...”
    इसके अतिरिक्त श्यामपट, स्लेट और तख़्ती, थाली के बैंगन, कद्दू, देशी फ्रिज, शहतूत, भैंस, कौआ, बिच्छू आदि बालरचनाओं के ऐसे विषय हैं, जिन पर कलम चलाना आदरणीय मयंक जी के ही बस की बात है।
    मैंने इस कृति की पाण्डुलिपि  को पढ़कर यह अनुभव किया है कि शास्त्री जी ने अपनी रचना का विषय चाहे जो भी चुना हो, मगर उसमें एक सन्देश बच्चों के लिए अवश्य निहित होता है।
   “मैना” पर लिखी गयी उनकी इस रचना को ही लीजिए-
“मैं तुमको चिड़िया कहता हूँ,
लेकिन तुम हो मैना जैसी।
तुम गाती हो कर्कस सुर में,
क्या मैना होती है ऐसी।।
और इसके आगे लिखते हैं-
“मीटी बोली से ही तो,
मन का उपवन खिलता है।
अच्छे-अच्छे कामों से ही,
जग में यश मिलता है।।
बैर-भाव को तज कर ही तो,
तुम अच्छे कहलाओगे।
मधुर वचन बोलोगे तो,
सबके प्यारे बन जाओगे।।...”
     इस प्रकार हम देखते हैं कि मयंक जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त बाल साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है, वह अत्यन्त सराहनीय है।
    मुझे पूरा विश्वास है कि बच्चे मयंक जी के बाल साहित्य से अवस्य लाभान्वित होंगे और उनकी यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
दुर्गाष्टमी, सम्वत् -२०६८
(डॉ. राष्ट्रबन्धु)
सम्पादक-बाल साहित्य समीक्षा
109 309, राम कृष्ण नगर,
कानपुर (उत्तर प्रदेश) 208 01

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