अपनी बालकृति
एक बालकविता
♥ घर भर की तुम राजदुलारी ♥
प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी,
बिटिया तुम हो कितनी प्यारी। मोहक है मुस्कान तुम्हारी, घरभर की तुम राजदुलारी।। नये-नये परिधान पहनकर, सबको बहुत लुभाती हो। अपने मन का गाना सुनकर, ठुमके खूब लगाती हो।। |
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Tuesday, September 17, 2013
"घर भर की तुम राजदुलारी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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घर भर की तुम राजदुलारी,
बालकविता,
हँसता गाता बचपन
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सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
ReplyDeleteमेरे घर-आगँन की तुम तो,
नन्हीं कलिका हो सुरभित।
हँसते-गाते देख तुम्हें,
मन सबका हो जाता हर्षित।।
तुलसी का बिरवा हो तुमतो ,
बाहर कैक्टस तने हुए,
मेरे घर-आगँन की तुम तो,
ReplyDeleteनन्हीं कलिका हो सुरभित।
हँसते-गाते देख तुम्हें,
मन सबका हो जाता हर्षित।।
तुलसी का बिरवा हो तुमतो ,
बाहर कैक्टस तने हुए,
सावधान रहना है तुमको ,
पल प्रतिपल हे वसुन्धरे।
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
beta varish to beti paras haai,
ReplyDeletebeta vans to beti ansh hai
beta aan to beti shan hai,
beta man to beti guman hi,
Ati sundar
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