अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"स्लेट और तख़्ती"
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही, तख्ती ने दम तोड़ दिया है। सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है, कलम टाट का छोड़ दिया है।। दादी कहती यही कहानी, बीत गई सभ्यता पुरानी, लकड़ी की पाटी होती थी, बची न उसकी कोई निशानी।।
फाउण्टेन-पेन गायब हैं, जेल पेन फल-फूल रहे हैं। रीत पुरानी भूल रहे हैं, नवयुग में सब झूल रहे हैं।।
समीकरण सब बदल गये हैं, शिक्षा का पिट गया दिवाला। बिगड़ गये परिवेश ज्ञान के, बिखर गई है मंजुल माला।।
|
Sundar
ReplyDelete