"हँसता गाता बचपन" से
"मेरा खरगोश"
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
बहुत प्यार से मैं इसको,
गोदी में बैठाता हूँ।
बागीचे की हरी घास,
मैं इसको रोज खिलाता हूँ।।
मस्ती में भरकर यह
लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है।
उछल-कूद करता-करता,
जब थोड़ा सा थक जाता है।।
तब यह उपवन की झाड़ी में,
छिप कर कुछ सुस्ताता है।
ताज़ादम हो करके ही,
मेरे आँगन में आता है।।
नित्य-नियम से सुबह-सवेरे,
यह घूमने जाता है।
जल्दी उठने की यह प्राणी,
सीख हमें दे जाता है।।
|
समर्थक
Thursday, October 24, 2013
"मेरा खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
बालकविता,
मेरा खरगोश,
हँसता गाता बचपन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुन्दर बाल कविता। अच्छा संग्रह खड़ा कर दिया है आपने हर विषय पर बाल गीतों कविताओं का।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteसुन्दर बाल कविता
ReplyDeleteBahut sundar.
ReplyDelete