"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"साइकिल की शान निराली"
दो चक्कों की प्यारी-प्यारी।
आओ इसकी करें सवारी।।
साईकिल की शान निराली।
इसकी चाल बहुत मतवाली।।
बस्ते का यह भार उठाती।
मुझको विद्यालय पहुँचाती।।
पैडल मारो जोर लगाओ।
मस्त चाल से इसे चलाओ।।
सड़क देख कर खूब मचलती।
पगडण्डी पर सरपट चलती।
हटो-बचो मत शब्द पुकारो।
भीड़ देखकर घण्टी मारो।।
अच्छे अंक क्लास में लाओ।
छुट्टी में इसको टहलाओ।।
यह पैट्रोल नहीं है खाती।
बिन ईंधन के चलती जाती।।
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Sunday, October 6, 2013
"साईकिल की शान निराली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हँसता गाता बचपन
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क्या बात!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय
नव रात्रि की शुभकामनायें-
दो चक्कों की प्यारी-प्यारी।
ReplyDeleteआओ इसकी करें सवारी।।
बहुत बढ़िया बाल कविता रोचक ज्ञान वर्धक।
बिना तेल की भैया गाड़ी ,
पर्यावरण को है ये प्यारी ,
सबसे न्यारी यही सवारी ,
सेहत को रखती है अगाड़ी।
Ati sunfar
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