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अब हरियाली तीज आ रही,
मम्मी मैं झूलूँगी झूला।
देख फुहारों को बारिश की,
मेरा मन खुशियों से फूला।।
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कई पुरानी भद्दी साड़ी,
बहुत आपके पास पड़ी हैं।
इतने दिन से इन पर ही तो,
मम्मी मेरी नजर गड़ी हैं।।
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इन्हें ऐंठकर रस्सी बुन दो,
मेरा झूला बन जाएगा।
मैं बैठूँगी बहुत शान से,
भइया मुझे झुलायेगा।।
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Friday, July 24, 2020
बालकविता "हरियाली तीज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बालकविता,
हरियाली तीज
Saturday, May 9, 2020
बालगीत "गुलमोहर पर छाई लाली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लाल रंग के सुमन
सुहाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
रूप अनोखा, गन्ध नहीं
है,
कागज-कलम निबन्ध नहीं
है,
उपवन से सम्बन्ध नहीं
है,
गरमी में हैं खिलते
जाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
भँवरों की गुंजार नहीं
है,
शीतल-सुखद बयार नहीं
है,
खिलने का आधार नहीं
है,
केवल लोकाचार निभाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
कुदरत की है शान
निराली,
गुलमोहर पर छाई लाली,
वनमाली करता रखवाली,
पथिक तुम्हारी छाया
पाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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गुलमोहर पर छाई लाली,
बालगीत
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