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Monday, October 28, 2013

"हाथी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"हाथी"
सूंड उठाकर नदी किनारे
पानी पीता हाथी।
सजी हुई है इसके ऊपर
सुन्दर-सुन्दर काठी।।

इस काठी पर बैठाकर
यह वन की सैर कराता।
बच्चों और बड़ों को
जंगल दिखलाने ले जाता।।

भारी तन का, कोमल मन का,
समझदार साथी है।
सर्कस में करतब दिखलाता
 प्यारा लगता हाथी है।।

Thursday, October 24, 2013

"मेरा खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
"मेरा खरगोश"
 
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।

बहुत प्यार से मैं इसको,
गोदी में बैठाता हूँ।
बागीचे की हरी घास,
मैं इसको रोज खिलाता हूँ।।

मस्ती में भरकर यह
लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है।
उछल-कूद करता-करता,
जब थोड़ा सा थक जाता है।।

तब यह उपवन की झाड़ी में,
छिप कर कुछ सुस्ताता है।
ताज़ादम हो करके ही,
मेरे आँगन में आता है।।

नित्य-नियम से सुबह-सवेरे,
यह घूमने जाता है।
जल्दी उठने की यह प्राणी,
सीख हमें दे जाता है।।

Saturday, October 19, 2013

♥ भैंस हमारी सीधी-सादी ♥ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
♥ भैंस हमारी सीधी-सादी 
सीधी-सादी, भोली-भाली।
लगती सुन्दर हमको काली।।

भैंस हमारी बहुत निराली।
खाकर करती रोज जुगाली।।

इसका बच्चा बहुत सलोना।
प्यारा सा है एक खिलौना।।

बाबा जी इसको टहलाते।
गर्मी में इसको नहलाते।।

गोबर रोज उठाती अम्मा।
सानी इसे खिलाती अम्मा।

गोबर की हम खाद बनाते।
खेतों में सोना उपजाते।।

भूसा-खल और चोकर खाती।
सुबह-शाम आवाज लगाती।।

कहती दूध निकालो आकर।
धन्य हुए हम इसको पाकर।।

Tuesday, October 15, 2013

"होली का मौसम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
♥ होली का मौसम 
रंग-गुलाल साथ में लाया।
होली का मौसम अब आया।
पिचकारी फिर से आई हैं,
बच्चों के मन को भाई हैं,
तन-मन में आनन्द समाया।
होली का मौसम अब आया।।
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गुझिया थाली में पसरी हैं,
पकवानों की महक भरी हैं, 
मठरी ने मन को ललचाया।
होली का मौसम अब आया।।
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बरफी की है शान निराली,
भरी हुई है पूरी थाली,
अम्मा जी ने इसे बनाया।
होली का मौसम अब आया।।
मम्मी बोली पहले खाओ,
उसके बाद खेलने जाओ,
सूरज ने मुखड़ा चमकाया।
होली का मौसम अब आया।

Thursday, October 10, 2013

♥ पतंग ♥ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
♥ पतंग ♥
नभ में उड़ती इठलाती है।
मुझको पतंग बहुत भाती है।।

रंग-बिरंगी चिड़िया जैसी,
लहर-लहर लहराती है।।

कलाबाजियाँ करती है जब,
मुझको बहुत लुभाती है।।

इसे देखकर मुन्नी-माला,
फूली नहीं समाती है।।

पाकर कोई सहेली अपनी,
दाँव-पेंच दिखलाती है।।

बहुत कष्ट होता तब मुझको।
जब पतंग कट जाती है।।

Sunday, October 6, 2013

"साईकिल की शान निराली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"साइकिल की शान निराली"
दो चक्कों की प्यारी-प्यारी।
आओ इसकी करें सवारी।।

साईकिल की शान निराली।
इसकी चाल बहुत मतवाली।।

बस्ते का यह भार उठाती।
मुझको विद्यालय पहुँचाती।।

पैडल मारो जोर लगाओ।
मस्त चाल से इसे चलाओ।।

सड़क देख कर खूब मचलती।
पगडण्डी पर सरपट चलती।

हटो-बचो मत शब्द पुकारो।
भीड़ देखकर घण्टी मारो।।

अच्छे अंक क्लास में लाओ।
छुट्टी में इसको टहलाओ।।

यह पैट्रोल नहीं है खाती।
बिन ईंधन के चलती जाती।।

Wednesday, October 2, 2013

"खेतों में शहतूत लगाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"खेतों में शहतूत लगाओ"
कितना सुन्दर और सजीला।
खट्टा-मीठा और रसीला।।

हरे-सफेद, बैंगनी-काले।
छोटे-लम्बे और निराले।।

शीतलता को देने वाले।
हैं शहतूत बहुत गुण वाले।।
पारा जब दिन का बढ़ जाता।
तब शहतूत बहुत मन भाता।

इसका वृक्ष बहुत उपयोगी।
ठण्डी छाया बहुत निरोगी।।

टहनी-डण्ठल सब हैं बढ़िया।
इनसे बनती हैं टोकरियाँ।।

रेशम के कीड़ों का पालन।
निर्धन को देता है यह धन।।
आँगन-बगिया में उपजाओ।
खेतों में शहतूत लगाओ।।