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Friday, November 23, 2012

"सबके मन को बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नागफनी की शैया पर भी,
ये हँसते-खिलते जाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के,
सारा उपवन महकाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
सुरभित होकर बलखाते हैं। 
सबके मन को बहलाते हैं।।  
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।