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Tuesday, January 28, 2014

"स्वागत गान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
लगभग 30 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था।
इसकी लोक-प्रियता का आभास 
मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही 
इसके समीपवर्ती क्षेत्र के अन्य विद्यालयों में भी 
इसको विशेष अवसरों पर गाया जाने लगा।
आप भी देखे-
स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।। 

भक्त को मिल गये देव बिन जाप से, 
धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे, 
आपके साथ आया सुगन्धित पवन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

हमको सुर, तान, लय का नही ज्ञान है, 
गल्तियाँ हों क्षमा हम तो अज्ञान हैं, 
आपका आगमन, धन्य शुभ आगमन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।। 

अपने आशीश से धन्य कर दो हमें, 
देश को दें दिशा ऐसा वर दो हमें, 
अपने कृत्यों से लायें, वतन में अमन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।। 

दिल के तारों से गूँथे सुमन हार कुछ, 
मंजु-माला नही तुच्छ उपहार कुछ, 
आपको हैं समर्पित हमारे सुमन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।। 

स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन। 
आप आये यहाँ आपको शत नमन।। 
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम!!

Friday, January 24, 2014

"पूजा के हम थाल सजाएँ " (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

माँ की आराधना
अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
अन्धकार को दूर भगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

जागो अब हो गया सवेरा,
दूर हो गया तम का घेरा,
शिक्षा की हम अलख जगाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

कुक्कुट कुकड़ूँकू चिल्लाया,
चिड़ियों ने भी गीत सुनाया,
नवप्रभात की खुशी मनायें।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

घर-आँगन को आज बुहारें,
कभी न हिम्मत अपनी हारें,
जीने का ढंग हम सिखलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

खिड़की दरवाजों को खोलें,
वेदों के मन्त्रों को बोलें,
पूजा के हम थाल सजाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

माता की आरती उतारें,
स्वर भरकर अर्चना उचारें,
ज्ञान-रश्मियों को फैलाएँ।
मन मन्दिर में दीप जलाएँ।।

Sunday, January 19, 2014

"हँसता गाता बचपन का शीर्षक गीत और भूमिका" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाजुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।

नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
नित्यप्रति कोमल पौधों पर,
स्नेह-सुधा बरसाना ।।

ये कोरे कागज के जैसे,
होते भोले-भाले।
इन नटखट गुड्डे-गुड़ियों के,
होते खेल निराले।।

भरा हुआ चंचल अखियों में,
कितना अपनापन है।
झूम-झूम कर मस्ती में,
हँसता-गाता बचपन है।।
 --
भूमिका  (डॉ.राष्ट्रबन्धु)
     डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक की लेखनी कविताओं के साथ-साथ बाल साहित्य में भी समान रूप से चलती है।मुझे इनकी पहली कृति नन्हे सुमन भी देखने का सौभाग्य मिला है और आज मुझे इनकी दूसरी बाल कृति हँसता गाता बचपन की भूमिका लिखने का अवसर मिला है।
    हँसता गाता बचपन भी नन्हे सुमन की ही भाँति श्रेष्ठ और आशाप्रद है। इसमें शास्त्रीयता की दृष्टि से छन्दों, रसों और वैज्ञानिकता का परिपालन किया गया है। जिससे उनके लेखन से आशाएँ उभरती हैं। आधुनिक विषयों पर मयंक जी अपनी लेखनी का जादू हमेशा शब्दों के माध्यम से बिखेरते हैं। मेरे विचार से इनके द्वारा वेबकैमपर हिन्दी में प्रकाशित पहली बाल रचना है।
“वेब कैम की शान निराली।
करता घरभर की रखवाली।।...
नवयुग की यह है पहचान।
वेबकैम है बहुत महान।।...”
    हँसता गाता बचपन एक ऐसी कृति है जिसमें प्राकृतिक परिवेश और बच्चों के वातावरण तथा बाल साहित्य की उद्देश्यपरक सम्भावनाएँ प्रकट होती हैं।
    इस कृति की प्रथम रचना वन्दना मॆं उन्होंने कामना की है-
“अन्धकार को दूर भगायें।
मन मन्दिर में दीप जलायें।।
जागो अब हो गया सवेरा।
दूर हो गया तम का डेरा।।
सिक्षा की हम अलख जगायें।
मन मन्दिर में दीप जलायें...।।“
    साथ ही शीर्षक गीत में तो इन्होंने कमाल ही किया है-
“हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाज़ुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।
नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
इन कोमल पौधों पर,
अपना स्नेह-सुधा बरसाना।।
ये कोरे कागज़ के जैसे,
होते भोले-भाले।
इन नटखट गुड्डे-गुड़ियों के,
होते खेल निराले।।
भरा हुआ चंचल अँखियों में,
कितना अपनापन है।
झूम-झूमकर मस्ती में,
हँसता गाता बचपन है।।“
    इस बालकृति में स्वागत गान के रूप में प्रस्तुत रचना तो उनकी कालजयी रचना है-
“स्वागतम आपका कर रहा रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत् नमन।।
भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षासदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
--
अपने आशीष से धन्य कर दो हमें,
देश को दें दिशा ऐसा वर दो हमें,
अपने कृत्यों से लायें वतन में अमन।...”
    इसके अतिरिक्त श्यामपट, स्लेट और तख़्ती, थाली के बैंगन, कद्दू, देशी फ्रिज, शहतूत, भैंस, कौआ, बिच्छू आदि बालरचनाओं के ऐसे विषय हैं, जिन पर कलम चलाना आदरणीय मयंक जी के ही बस की बात है।
    मैंने इस कृति की पाण्डुलिपि  को पढ़कर यह अनुभव किया है कि शास्त्री जी ने अपनी रचना का विषय चाहे जो भी चुना हो, मगर उसमें एक सन्देश बच्चों के लिए अवश्य निहित होता है।
   “मैना” पर लिखी गयी उनकी इस रचना को ही लीजिए-
“मैं तुमको चिड़िया कहता हूँ,
लेकिन तुम हो मैना जैसी।
तुम गाती हो कर्कस सुर में,
क्या मैना होती है ऐसी।।
और इसके आगे लिखते हैं-
“मीटी बोली से ही तो,
मन का उपवन खिलता है।
अच्छे-अच्छे कामों से ही,
जग में यश मिलता है।।
बैर-भाव को तज कर ही तो,
तुम अच्छे कहलाओगे।
मधुर वचन बोलोगे तो,
सबके प्यारे बन जाओगे।।...”
     इस प्रकार हम देखते हैं कि मयंक जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त बाल साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है, वह अत्यन्त सराहनीय है।
    मुझे पूरा विश्वास है कि बच्चे मयंक जी के बाल साहित्य से अवस्य लाभान्वित होंगे और उनकी यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
दुर्गाष्टमी, सम्वत् -२०६८
(डॉ. राष्ट्रबन्धु)
सम्पादक-बाल साहित्य समीक्षा
109 309, राम कृष्ण नगर,
कानपुर (उत्तर प्रदेश) 208 01

Tuesday, January 14, 2014

"मच्छर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"मच्छर"
झूम-झूमकर मच्छर आते।
कानों में गुञ्जार सुनाते।।
नाम ईश का जपते-जपते।
सुबह-शाम को खूब निकलते।।

बैठा एक हमारे सिर पर।
खून चूसता है जी भर कर।।
नहीं यह बिल्कुल भी डरता।
लाल रक्त से टंकी भरता।।

कैसे मीठी निंदिया आये?
मक्खी-मच्छर नहीं सतायें।
मच्छरदानी को अपनाओ।
चैन-अमन से सोते जाओ।।

Friday, January 10, 2014

"बालगीत-गिलहरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"गिलहरी"
बैठ मजे से मेरी छत पर,
दाना-दुनका खाती हो!

उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
तुमको पास बुलाने को, 
मैं मूँगफली दिखलाता हूँ,

कट्टो-कट्टो कहकर तुमको,
जब आवाज लगाता हूँ,
कुट-कुट करती हुई तभी तुम,
जल्दी से आ जाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
नाम गिलहरी, बहुत छरहरी, 
आँखों में चंचलता है,
अंग मर्मरी, रंग सुनहरी,
मन में भरी चपलता है,
हाथों में सामग्री लेकर,
बड़े चाव से खाती हो!

उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
पेड़ों की कोटर में बैठी
धूप गुनगुनी सेंक रही हो,
कुछ अपनी ही धुन में ऐंठी
टुकर-टुकरकर देख रही हो,

भागो-दौड़ो आलस छोड़ो,
सीख हमें सिखलाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!

Monday, January 6, 2014

"माता के उपकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"माता के उपकार"
माता के उपकार बहुत,
वो भाषा हमें बताती है!
उँगली पकड़ हमारी माता,
चलना हमें सिखाती है!!

दुनिया में अस्तित्व हमारा,
माँ के ही तो कारण है,
खुद गीले में सोकर,
वो सूखे में हमें सुलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..

देश-काल चाहे जो भी हो,
माँ ममता की मूरत है,
धोकर वो मल-मूत्र हमारा,
पावन हमें बनाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..

पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,
होती नही कुमाता माँ,
अपने हिस्से की रोटी,
बेटों को सदा खिलाती है!
उँगली पकड़ हमारी……..

नहीं उऋण हो सकता कोई,
अपनी जननी के ऋण से,
माँ का आदर करो सदा,
यह रचना यही सिखाती है!
उँगली पकड़ हमारी……

Thursday, January 2, 2014

"मैंने चित्र बनाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"मैंने चित्र बनाया"
[IMG_2471 - pranjal[4].jpg]
ब्लैकबोर्ड पर श्वेत चॉक से, 
देखो मैंने चित्र बनाया।  
अपने कोमल अनुभावों से, 
मैंने इसको खूब सजाया।। 

खेतों में छोटी सी कुटिया, 
जिसके आगे पगदण्डी है। 
छायादार वृक्ष भी तो हैं, 
जिनकी हवा बहुत ठण्डी है।। 

इस छोटे से कच्चे घर में, 
गर्मी मुझको नहीं सताती। 
जाड़े के मौसम में प्रतिदिन, 
धूप गुनगुनी बहुत सुहाती।। 

प्यार भरे सम्बन्ध यहाँ हैं, 
भीड़-भाड़ का नाम नहीं है। 
श्रम और श्रमिक समाज यहाँ हैं, 
आलस का कुछ काम नहीं है।। 

घर-घर में हैं सन्त विनोबा, 
चौपालों में गांधी बाबा, 
अन्न बरसता है खेतों में, 
ग्राम हमारा काशी-काबा।

♥चित्रांकन-प्रांजल शास्त्री♥