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Friday, November 23, 2012

"सबके मन को बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नागफनी की शैया पर भी,
ये हँसते-खिलते जाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के,
सारा उपवन महकाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
सुरभित होकर बलखाते हैं। 
सबके मन को बहलाते हैं।।  
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

Thursday, October 25, 2012

"प्रभू पंख दे देना सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

आज फेसबुक पर
डॉ. प्रीत अरोरा जी का यह चित्र देखा
तो बालगीत रचने से
अपने को न रोक सका!
काश् हमारे भी पर होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

पल में दूर देश में जाते,
नानी जी के घर हो आते,
कलाबाजियाँ करते होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

चढ़े भाव हैं आज दूध के,
बिलख रहे हम बिना दूध के.
मिलावटी से सेहत खोते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

काश् हमें खग प्रभू बनाते,
ताजे-ताजे फल हम खाते,
भाग्यवान होते हैं तोते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

हमको भी प्रभु हंस बनाना,
सारे गुण हमको सिखलाना,
शुद्ध दूध के लिए न रोते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

जायेंगे हम पार समन्दर,
प्रभू पंख दे देना सुन्दर,
हम भी चिट्ठी ढोते होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।

Thursday, May 24, 2012

"कूलर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये।
इसी लिए कूलर कहलाये।।

जब जाड़ा कम हो जाता है।
होली का मौसम आता है।।

फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ।
यही हवाएँ लू कहलायें।।

तब यह बक्सा बड़े काम का।
सुख देता है परम धाम का।।

कूलर गर्मी हर लेता है।
कमरा ठण्डा कर देता है।।

चाहे घर हो या हो दफ्तर।
सजा हुआ यह हर खिड़की पर।।

इसकी महिमा अपरम्पार।
यह ठण्डक का है भण्डार।।

Sunday, March 4, 2012

"रंग-बिरंगी आई होली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

आयी होली, आई होली।
रंग-बिरंगी आई होली।
मुन्नी आओ, चुन्नी आओ,
रंग भरी पिचकारी लाओ,
मिल-जुल कर खेलेंगे होली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
मठरी खाओ, गुँजिया खाओ,
पीला-लाल गुलाल उड़ाओ,
मस्ती लेकर आई होली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
रंगों की बौछार कहीं है,
ठण्डे जल की धार कहीं है,
भीग रही टोली की टोली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
परसों विद्यालय जाना है,
होम-वर्क भी जँचवाना है,
मेहनत से पढ़ना हमजोली।
रंग-बिरंगी आई होली।।

Wednesday, February 22, 2012

"मुझको दो वरदान प्रभू!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

pranjal copy
मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा। 
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।

मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज घुमाने जाते हैं।
पापा जी मेरी खातिर,
कुछ नये खिलौने लाते हैं।।
मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं।।
ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे।।
सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है।।
मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ।।
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।।  

Thursday, February 16, 2012

"छुक-छुक करती आयी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

धक्का-मुक्की रेलम-पेल।
छुक-छुक करती आयी रेल।।
इंजन चलता सबसे आगे।
पीछे -पीछे डिब्बे भागे।।

हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता।
पटरी पर यह तेज दौड़ता।।
जब स्टेशन आ जाता है।
सिग्नल पर यह रुक जाता है।।

जब तक बत्ती लाल रहेगी।
इसकी जीरो चाल रहेगी।।

हरा रंग जब हो जाता है।
तब आगे को बढ़ जाता है।।
बच्चों को यह बहुत सुहाती।
नानी के घर तक ले जाती।।

सबके मन को भाई रेल।
आओ मिल कर खेलें खेल।।

धक्का-मुक्की रेलम-पेल।
छुक-छुक करती आयी रेल।।

Saturday, February 11, 2012

"भगवान एक है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


मन्दिर, मस्जिद और गुरूद्वारे।
भक्तों को लगते हैं प्यारे।।
हिन्दू मन्दिर में हैं जाते।
देवताओं को शीश नवाते।।
ईसाई गिरजाघर जाते।
दीन-दलित को गले लगाते।।
जहाँ इमाम नमाज पढ़ाता।
मस्जिद उसे पुकारा जाता।।
सिक्खों को प्यारे गुरूद्वारे।
मत्था वहाँ टिकाते सारे।।

राहें सबकी अलग-अलग हैं।
पर सबके अरमान नेक है।

नाम अलग हैं, पन्थ भिन्न हैं।
पर जग में भगवान एक है।।

Friday, February 3, 2012

‘‘गुन-गुन करता भँवरा आया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

गुन-गुन करता भँवरा आया।
कलियों फूलों पर मंडराया।।

यह गुंजन करता उपवन में।
गीत सुनाता है गुंजन में।।

कितना काला इसका तन है।
किन्तु बड़ा ही उजला मन है।

जामुन जैसी शोभा न्यारी।
खुशबू इसको लगती प्यारी।।

यह फूलों का रस पीता है।
मीठा रस पीकर जीता है।।

Sunday, January 22, 2012

"विद्यालय में मुझको भी जाना है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


भैया! मुझको भी,
लिखना-पढ़ना, सिखला दो।
क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,
गिनती भी बतला दो।।

पढ़ लिख कर मैं,
मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।
दुनिया भर में,
बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।

रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,
मैं भी उठा करूँगी।
पुस्तक लेकर पढ़ने में,
मैं संग में जुटा करूँगी।।

बस्ता लेकर विद्यालय में,
मुझको भी जाना है।
इण्टरवल में टिफन खोल कर,
खाना भी खाना है।।

छुट्टी में गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।।

Friday, January 20, 2012

"देहरादून नगर बाबा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


पापा की लग गई नौकरी,
देहरादून नगर बाबा।
कैसे भूलें प्यार आपका,
नहीं सूझता कुछ बाबा।।

छोटा घर है, नया नगर है,
सर्द हवा चलती सर-सर है,
बन जायेंगे नये दोस्त भी,
अभी अकेले हैं बाबा।

प्यारे चाचा-दादी जी की,
हमको याद सताती है,
विद्यालय की पीली बस भी,
गलियों में नहीं आती है,
भीड़ बहुत है इस नगरी में,
मँहगाई भी है बाबा।

आप हमारे लिए रोज ही,
रचनाएँ रच देते हो,
बच्चों के मन की बातों को,
सहज भाव से कहते हो,
ब्लॉग आपका बिना नेट के,
कैसे हम देखें बाबा।

छोटी बहना प्राची को तो,
बाबा-दादी प्यारी थी,
छोटी होने के कारण वो,
सबकी बहुत दुलारी थी।
बहुत अकेली सहमी सी है,
गुड़िया रानी जी बाबा।
गर्मी की छुट्टी होते ही,
अपने घर हम आयेंगे,
जो भी लिखा आपने बाबा,
पढ़कर वो हम गायेंगे,
जब भी हो अवकाश आपको,
मिलने आना तुम बाबा।

Monday, January 9, 2012

"तितली रानी कितनी सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मन को बहुत लुभाने वाली,
तितली रानी कितनी सुन्दर।
भरा हुआ इसके पंखों में,
रंगों का है एक समन्दर।।

उपवन में मंडराती रहती,
फूलों का रस पी जाती है।
अपना मोहक रूप दिखाने,
यह मेरे घर भी आती है।।

भोली-भाली और सलोनी,
यह जब लगती है सुस्ताने।
इसे देख कर एक छिपकली,
आ जाती है इसको खाने।।

आहट पाते ही यह उड़ कर,
बैठ गयी चौखट के ऊपर।
मेरा मन भी ललचाया है,
मैं भी देखूँ इसको छूकर।।

इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
होली की हैं याद दिलाते।
सजी धजी दुल्हन को पाकर,
बच्चे फूले नही समाते।।