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Wednesday, February 22, 2012

"मुझको दो वरदान प्रभू!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

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मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा। 
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा।।

मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज घुमाने जाते हैं।
पापा जी मेरी खातिर,
कुछ नये खिलौने लाते हैं।।
मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं।।
ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे।।
सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है।।
मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ।।
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ।।  

Thursday, February 16, 2012

"छुक-छुक करती आयी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

धक्का-मुक्की रेलम-पेल।
छुक-छुक करती आयी रेल।।
इंजन चलता सबसे आगे।
पीछे -पीछे डिब्बे भागे।।

हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता।
पटरी पर यह तेज दौड़ता।।
जब स्टेशन आ जाता है।
सिग्नल पर यह रुक जाता है।।

जब तक बत्ती लाल रहेगी।
इसकी जीरो चाल रहेगी।।

हरा रंग जब हो जाता है।
तब आगे को बढ़ जाता है।।
बच्चों को यह बहुत सुहाती।
नानी के घर तक ले जाती।।

सबके मन को भाई रेल।
आओ मिल कर खेलें खेल।।

धक्का-मुक्की रेलम-पेल।
छुक-छुक करती आयी रेल।।

Saturday, February 11, 2012

"भगवान एक है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


मन्दिर, मस्जिद और गुरूद्वारे।
भक्तों को लगते हैं प्यारे।।
हिन्दू मन्दिर में हैं जाते।
देवताओं को शीश नवाते।।
ईसाई गिरजाघर जाते।
दीन-दलित को गले लगाते।।
जहाँ इमाम नमाज पढ़ाता।
मस्जिद उसे पुकारा जाता।।
सिक्खों को प्यारे गुरूद्वारे।
मत्था वहाँ टिकाते सारे।।

राहें सबकी अलग-अलग हैं।
पर सबके अरमान नेक है।

नाम अलग हैं, पन्थ भिन्न हैं।
पर जग में भगवान एक है।।

Friday, February 3, 2012

‘‘गुन-गुन करता भँवरा आया’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

गुन-गुन करता भँवरा आया।
कलियों फूलों पर मंडराया।।

यह गुंजन करता उपवन में।
गीत सुनाता है गुंजन में।।

कितना काला इसका तन है।
किन्तु बड़ा ही उजला मन है।

जामुन जैसी शोभा न्यारी।
खुशबू इसको लगती प्यारी।।

यह फूलों का रस पीता है।
मीठा रस पीकर जीता है।।