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Tuesday, January 1, 2013

“उड़ते पंख पसार!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नीला नभ जिनका संसार। 
वो उड़ते हैं पंख पसार।। 
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जब कोई भी थक जाता है। 
वो डाली पर सुस्ताता है।।
तोता पेड़ों का बासिन्दा। 
कहलाता आजाद परिन्दा।। 
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खाने का सामान धरा है। 
पर मन में अवसाद भरा है।। 
लोहे का हो या कंचन का। 
बन्धन दोनों में तन मन का।। 
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अत्याचार कभी मत करना। 
मत इसको पिंजडे में धरना।। 
कारावास बहुत दुखदायी। 
जेल नहीं होती सुखदायी।। 
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मत देना इसको अवसाद। 
करना तोते को आज़ाद।। 
(चित्र गूगल छवियों से साभार)