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लाल रंग के सुमन
सुहाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
रूप अनोखा, गन्ध नहीं
है,
कागज-कलम निबन्ध नहीं
है,
उपवन से सम्बन्ध नहीं
है,
गरमी में हैं खिलते
जाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
भँवरों की गुंजार नहीं
है,
शीतल-सुखद बयार नहीं
है,
खिलने का आधार नहीं
है,
केवल लोकाचार निभाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
कुदरत की है शान
निराली,
गुलमोहर पर छाई लाली,
वनमाली करता रखवाली,
पथिक तुम्हारी छाया
पाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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Saturday, May 9, 2020
बालगीत "गुलमोहर पर छाई लाली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गुलमोहर पर छाई लाली,
बालगीत
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