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Sunday, December 29, 2013

"चिड़िया की कहानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"चिड़िया की कहानी"
IMG_2480 - Copyरंग-बिरंगी चिड़िया रानी। 
सबको लगती बहुत सुहानी।। 

दाना-दुनका चुग कर आती। 
फिर डाली पर है सुस्ताती। 

रोज भोर में यह उठ जाती। 
चीं-चीं का मृदु-राग सुनाती।। 

फुदक-फुदक कर कला दिखाती। 
झटपट नभ में यह उड़ जाती।। 

तिनका-तिनका जोड़-जोड़कर। 
नीड़ बनाती है यह सुन्दर।। 

उसमें अण्डों को देती है। 
तन-मन से उनको सेती है।। 

अब यह मन ही मन मुस्काती। 
चूजे पाकर खुश हो जाती।। 

चुग्गा इनको नित्य खिलाती। 
दुनियादारी को सिखलाती।। 

एक समय ऐसा भी आता। 
जब इसका मन है अकुलाता।। 

फुर्र-फुर्र बच्चे उड़ जाते। 
इसका घर सूना कर जाते।। 

करने लगते हैं मनमानी। 
चिड़िया की है यही कहानी।।

♥चित्रांकन-प्रांजल शास्त्री♥

Wednesday, December 25, 2013

"मेरी रेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालगीत
"मेरी रेल"
इंजन-डिब्बों का है मेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

इंजन चलता आगे-आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे,
सबको अच्छी लगती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

मैट्रो ट्रेन बनाई मैंने,
इसको बहुत सजाई मैंने,
मम्मी देखो मेरी रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

कल विद्यालय में जाऊँगा,
दीदी जी को दिखलाऊँगा,
दो पटरी पर चलती रेल।
आओ आज बनाएँ रेल।।

Saturday, December 21, 2013

"बालकविता-मिक्की माउस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"मिक्की माउस"
मिक्की माउस कितना अच्छा।
लगता है चूहे का बच्चा।।

कितना हँसमुख और सलोना।
यह लगता है एक खिलौना।।

इसकी सूरत सबसे न्यारी।
लीची जैसी आँखें प्यारी।।

तन का काला, मन का गोरा।
मुझको भाता है यह छोरा।।
बालचित्रकार-प्राञ्जल

Tuesday, December 17, 2013

"कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता"
रोज सवेरे मैं उठ जाता।
कुकड़ूकूँ की बाँग लगाता।।

कहता भोर हुई उठ जाओ।
सोने में मत समय गँवाओ।।

आलस छोड़ो, बिस्तर त्यागो।
मैं भी जागा, तुम भी जागो।।

पहले दिनचर्या निपटाओ।
फिर पढ़ने में ध्यान लगाओ।।

अगर सफलता को है पाना।
सेवा-भाव सदा अपनाना।।

मुर्गा हूँ मैं सिर्फ नाम का।
सेवक हूँ मैं बहुत काम का।।

Friday, December 13, 2013

"लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे"
लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!

बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!
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प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!
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अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको हैं दो लड्डू खाना!

तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!

Monday, December 9, 2013

"कच्चे घर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति "हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
"कच्चे घर"
सुन्दर-सुन्दर सबसे न्यारा।
प्राची का घर सबसे प्यारा।।

खुला-खुला सा नील गगन है।
हरा-भरा फैला आँगन है।।

पेड़ों की छाया सुखदायी।
सूरज ने किरणें चमकाई।।

कल-कल का है नाद सुनाती।
निर्मल नदिया बहती जाती।।

तन-मन खुशियों से भर जाता।
यहाँ प्रदूषण नहीं सताता।।

लोग पुराने यह कहते हैं।
 कच्चे घर अच्छे रहते हैं।।

Thursday, December 5, 2013

"सबके मन को बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बाल कृति "हँसता गाता बचपन" से
एक बालगीत
"सबके मन को बहलाते हैं"
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

नागफनी की शैया पर भी,
ये हँसते-खिलते जाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के,
सारा उपवन महकाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
सुरभित होकर बलखाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

Sunday, December 1, 2013

"मेरी डॉल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"मेरी डॉल"
मम्मी देखो मेरी डॉल।
खेल रही है यह तो बॉल।।

पढ़ना-लिखना इसे न आता।
खेल-खेलना बहुत सुहाता।।

कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
विद्यालय में नाम लिखाना।।

रोज सवेरे मैं गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी. सिखलाऊँगी।
अपने साथ इसे भी मैं तो,
विद्यालय में ले जाऊँगी।।

यह भी तो मेरे जैसी ही,
भोली-भाली सच्ची सी है।
मेरी गुड़िया सबसे न्यारी,
ये छोटी सी बच्ची सी है।।

Wednesday, November 27, 2013

"सूअर का बच्चा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"सूअर का बच्चा"
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।।

लोग स्वयं को साफ समझते।
लेकिन मुझको गन्दा कहते।।

मेरी बात सुनो इन्सानों।
मत अपने को पावन मानों।।

भरी हुई सबके कोटर में। 
तीन किलो गन्दगी उदर में।।

श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।

तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।

भेद-भाव नहीं मुझको आता।
मेरा दुनिया भर से नाता।।

ऊपर वाले की है माया।
मुझे मिली है सुन्दर काया।।

साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।। 

Saturday, November 23, 2013

"बिच्छू" (डा.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"बिच्छू"
चिमटे जैसी भुजा बनी हैं,
प्यारी सी दुम धनुष-कमान।
विष से भरा दंश है घातक है,
जैसे हो जहरीला बाण।।

कमर मंथरा जैसी टेढ़ी,
परसराम जैसी आदत है।
प्रीत-रीत यह नहीं जानता,
इसको छूना ही आफत है।।

डरता नहीं किसी से है यह,
छोटा-खोटा और कृतघ्न है।
अकड-अकड़ कर चलता है यह,
अपनी ही धुन में निमग्न है।।

मन से क्रोधी, तन से तिरछा,
नहीं कहीं से यह सरल है।
दूर हमेशा रहना इससे,
बिच्छू का पर्याय गरल है।।

Monday, November 18, 2013

"झूला झूलें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"झूला झूलें"
आओ दोनों झूला झूलें।
खिड़की-दरवाजों को छू लें।।

मिल-जुलकर हम मौज मनाएँ।
जोर-जोर से गाना गाएँ।।

माँ कहती मत शोर मचाओ।
जल्दी से विद्यालय जाओ।।

मम्मी आज हमारा सण्डे।
सण्डे को होता होलीडे।।

नाहक हमको टोक रही क्यों?
हमें खेल से रही क्यो??

गीत-कहानी तो कहने दो।
थोड़ी देर हमें रहने दो।।

Thursday, November 14, 2013

"आँगन बाड़ी के हैं तारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
 
बालकविता
"आँगन बाड़ी के हैं तारे"
आँगन बाड़ी के हैं तारे।
बालक हैं  ये प्यारे-प्यारे।।
आओ इनका मान करें हम।
सुमनों का सम्मान करें हम।।
बाल दिवस हम आज मनाएँ।
नेहरू जी को शीश नवाएँ।।
जो थे भारत भाग्य विधाता।
बच्चों से रखते थे नाता।।
सबसे अच्छे जग से न्यारे।
बच्चों के हैं चाचा प्यारे।।