"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"सूअर का बच्चा"
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।।
लोग स्वयं को साफ समझते।
लेकिन मुझको गन्दा कहते।।
मेरी बात सुनो इन्सानों।
मत अपने को पावन मानों।।
भरी हुई सबके कोटर में।
तीन किलो गन्दगी उदर में।।
श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।
तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।
भेद-भाव नहीं मुझको आता।
मेरा दुनिया भर से नाता।।
ऊपर वाले की है माया।
मुझे मिली है सुन्दर काया।।
साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।।
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Wednesday, November 27, 2013
"सूअर का बच्चा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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हँसता गाता बचपन
Saturday, November 23, 2013
"बिच्छू" (डा.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"बिच्छू"
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चिमटे जैसी भुजा बनी हैं,
प्यारी सी दुम धनुष-कमान।
विष से भरा दंश है घातक है,
जैसे हो जहरीला बाण।।
कमर मंथरा जैसी टेढ़ी,
परसराम जैसी आदत है।
प्रीत-रीत यह नहीं जानता, इसको छूना ही आफत है।। डरता नहीं किसी से है यह, छोटा-खोटा और कृतघ्न है। अकड-अकड़ कर चलता है यह, अपनी ही धुन में निमग्न है।। मन से क्रोधी, तन से तिरछा, नहीं कहीं से यह सरल है। दूर हमेशा रहना इससे, बिच्छू का पर्याय गरल है।। |
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Monday, November 18, 2013
"झूला झूलें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"हँसता गाता बचपन" से
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"झूला झूलें"
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Thursday, November 14, 2013
"आँगन बाड़ी के हैं तारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"हँसता गाता बचपन" से
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"आँगन बाड़ी के हैं तारे"
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Saturday, November 9, 2013
"झण्डा प्यारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
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"झण्डा प्यारा"
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Tuesday, November 5, 2013
"चिल्लाया है कौआ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
पंछी है सबसे न्यारा।
डाली पर बैठा कौओं का,
जोड़ा कितना प्यारा।
नजर घुमाकर देख रहे ये,
कहाँ मिलेगा खाना।
जिसको खाकर कर्कश स्वर में,
छेड़ें राग पुराना।।
काँव-काँव का इनका गाना,
सबको नहीं सुहाता।
लेकिन बच्चों को कौओं का,
सुर है बहुत लुभाता।।
कोयलिया की कुहू-कुहू,
बच्चों को रास न आती।
कागा की प्यारी सी बोली,
इनका मन बहलाती।।
देख इसे आँगन में,
शिशु ने बोला औआ-औआ।
खुश होकर के काँव-काँवकर,
चिल्लाया है कौआ।।
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Friday, November 1, 2013
"मैना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"मैना"
मैं तुमको गुरगल कहता हूँ,
लेकिन तुम हो मैना जैसी। तुम गाती हो कर्कश सुर में, क्या मैना होती है ऐसी??
सुन्दर तन पाया है तुमने,
लेकिन बहुत घमण्डी हो।
नहीं जानती प्रीत-रीत को,
तुम चिड़िया उदण्डी हो।।
जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर,
तुम आगे को बढ़ती हो।
अपनी सखी-सहेली से तुम,
सौतन जैसी लड़ती हो।।
लड़कर मार भगाती हो। प्यारे-प्यारे कबूतरों को भी, तुम बहुत सताती हो।। मीठी बोली से ही तो, मन का उपवन खिलता है। अच्छे-अच्छे कामों से ही, जग में यश मिलता है।। बैर-भाव को तजकर ही तो, अच्छे तुम कहलाओगे। मधुर वचन बोलोगे तो, सबके प्यारे बन जाओगे।। |
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