अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से ![]()
तख्ती और स्लेट
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सिसक-सिसक कर स्लेट
जी रही,
तख्ती ने दम तोड़
दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख
नहीं है,
कलम टाट का छोड़
दिया है।।
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दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता
पुरानी।
लकड़ी की पाटी होती
थी,
बची न उसकी कोई
निशानी।
फाउण्टेन-पेन गायब
हैं,
जेल पेन फल-फूल रहे
हैं।
रीत पुरानी भूल रहे
हैं,
नवयुग में सब झूल
रहे हैं।।
समीकरण सब बदल गये
हैं,
शिक्षा का पिट गया
दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश
प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल
माला।।
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समर्थक
Monday, April 28, 2014
"तख्ती और स्लेट" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बालकविता,
हँसता गाता बचपन
Thursday, April 24, 2014
"भैंस हमारी बहुत निराली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से

"भैंस हमारी बहुत निराली"
भैंस हमारी बहुत निराली।
खाकर करती रोज जुगाली।।
इसका बच्चा बहुत सलोना।
प्यारा सा है एक खिलौना।।
बाबा जी इसको टहलाते।
गर्मी में इसको नहलाते।।
गोबर रोज उठाती अम्मा।
सानी इसे खिलाती अम्मा।
गोबर की हम खाद बनाते।
खेतों में सोना उपजाते।।
भूसा-खल और चोकर खाती।
सुबह-शाम आवाज लगाती।।
कहती दूध निकालो आकर।
धन्य हुए हम इसको पाकर।।
सीधी-सादी, भोली-भाली।
लगती सुन्दर हमको काली।।
Sunday, April 20, 2014
"फोटो फीचर-बिजली कड़की पानी आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से

"बिजली कड़की पानी आया"
उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
मोटी जल की बूँदें आईं।
आँधी-ओले संग में लाईं।।
धरती का सन्ताप मिटाया।
बिजली कड़की पानी आया।।
लगता है हमको अब ऐसा।
ग्रीष्म बना चौमासा जैसा।।

पेड़ों पर लीची हैं झूली।
बगिया में अमिया भी फूली।।

आम और लीची घर लाओ।
जमकर खाओ, मौज मनाओ।।
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हँसता गाता बचपन
Wednesday, April 16, 2014
"रंग-बिरंगे छाते" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से

धूप और बारिश से,
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
आसमान में जब घन छाते,
तब ये हाथों में हैं आते।
रंग-बिरंगे छाते ही तो,
हम बच्चों के मन को भाते।।
तभी अचानक आसमान से,
मोटी-मोटी बूँदें आई।
प्रांजल ने उतार खूँटी से,
छतरी खोली और लगाई।।
मोटी-मोटी बूँदें आई।
प्रांजल ने उतार खूँटी से,
छतरी खोली और लगाई।।
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हँसता गाता बचपन
Saturday, April 12, 2014
"बालकविता-कद्दू" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से

बालकविता
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हँसता गाता बचपन
Tuesday, April 8, 2014
"पतंग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से

Friday, April 4, 2014
"बाल मिठाई" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से

"बाल मिठाई"
मेरे पापा गये हुए थे,
परसों नैनीताल।
मेरे लिए वहाँ से लाए,
वो यह मीठा माल।।
खोए से यह बनी हुई है,
जो टॉफी का स्वाद जगाती।
मीठी-मीठी बॉल लगी हैं,
खोए से यह बनी हुई है,
जो टॉफी का स्वाद जगाती।
मीठी-मीठी बॉल लगी हैं,
मुझको बहुत पसंद है आती।।
कभी पहाड़ों पर जाओ तो,
इसको भी ले आना भाई।
भूल न जाना खास चीज है,
अल्मौड़ा की बॉलमिठाई।।
कभी पहाड़ों पर जाओ तो,
इसको भी ले आना भाई।
भूल न जाना खास चीज है,
अल्मौड़ा की बॉलमिठाई।।
रक्षाबन्धन के अवसर पर,
यह मेरे भइया ने खाई।
उसके बाद बहुत खुश होकर,
मुझसे राखी भी बंधवाई।।
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हँसता गाता बचपन
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