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Wednesday, April 16, 2014

"रंग-बिरंगे छाते" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अपनी बालकृति "हँसता गाता बचपन" से
"रंग-बिरंगे छाते"
 
धूप और बारिश से,
जो हमको हैं सदा बचाते।
छाया देने वाले ही तो,
कहलाए जाते हैं छाते।।
 
आसमान में जब घन छाते,
तब ये हाथों में हैं आते।
रंग-बिरंगे छाते ही तो,
हम बच्चों के मन को भाते।।
तभी अचानक आसमान से,
मोटी-मोटी बूँदें आई।
प्रांजल ने उतार खूँटी से,
छतरी खोली और लगाई।।

प्राची ने जैसे ही देखा,
भइया छतरी ले आया है।
उसने भी प्यारा सा छाता,
अपने सिर पर फैलाया है।।
 
कई दिनों में वर्षा आई,
जाग गई मन में उमंग हैं।
भाई-बहन दोनों ही खुश हैं,
दो छातों के अलग रंग हैं।।

4 comments:

  1. वाह.;बच्‍चों की मस्‍ती कवि‍ता में उतर आई

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  2. बहुत सुंदर. बधाई.

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