खेल रही है यह तो बॉल।। पढ़ना-लिखना इसे न आता। खेल-खेलना बहुत सुहाता।। कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना। विद्यालय में नाम लिखाना।। ![]() रोज सवेरे मैं गुड़िया को, ए.बी.सी.डी. सिखलाऊँगी। अपने साथ इसे भी मैं तो, विद्यालय में ले जाऊँगी।। |
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Sunday, September 18, 2011
"मेरी गुड़िया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत प्यारी कविता .... प्यारे फोटोस
ReplyDeleteबहुत प्यारी गुडिया।
ReplyDelete------
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
पढना लिखना तनिक न आये |
ReplyDeleteगुड़िया तो बुढ़िया हो जाए ||
जायेगी ससुराल सास को --
पढना लिखना कौन सिखाये ??
सीख फटाफट ए बी सी डी-
गिनती-टेबुल जोड़ घटाए--
नीति नियम गुरुजन का आदर-
ज्ञान पाय विज्ञान पढाये ||
कम्पूटर इंटरनेट ब्लोगिंग-
दुनिया को सद-राह दिखाए ||
भोली गुड़िया प्यारी गुड़िया
प्यारी बन सबको हरसाए ||
bal sahitya ko padhne ka apna hi anand hai..bachpan ki yaad dilata hai..behatarin
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना है ...
ReplyDeleteप्यारी सी गुड़िया... प्यारी सी कविता!!!
ReplyDeleteAapka jawaab nahi.. Badhai.
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