सुन्दर तन पाया है तुमने, लेकिन बहुत घमण्डी हो। नहीं जानती प्रीत-रीत को, तुम चिड़िया उदण्डी हो।। जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर, तुम आगे को बढ़ती हो। अपनी सखी-सहेली से तुम, सौतन जैसी लड़ती हो।। भोली-भाली चिड़ियों को तुम, लड़कर मार भगाती हो। प्यारे-प्यारे कबूतरों को भी, तुम बहुत सताती हो।। मीठी बोली से ही तो, मन का उपवन खिलता है। अच्छे-अच्छे कामों से ही, जग में यश मिलता है।। बैर-भाव को तजकर ही तो, अच्छे तुम कहलाओगे। मधुर वचन बोलोगे तो, सबके प्यारे बन जाओगे।। |
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Wednesday, December 21, 2011
"सबके प्यारे बन जाओगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बाल कविता
Thursday, November 24, 2011
Friday, September 30, 2011
"दादी जी के जन्मदिवस को, साथ हर्ष के आज मनाएँ"
हम बच्चों के जन्मदिवस को, धूम-धाम से आप मनातीं। रंग-बिरंगे गुब्बारों से, पूरे घर को आप सजातीं।। आज मिला हमको अवसर ये, हम भी तो कुछ कर दिखलाएँ। दादी जी के जन्मदिवस को, साथ हर्ष के आज मनाएँ।। अपने नन्हें हाथों से हम, तुमको देंगे कुछ उपहार। बदले में हम माँग रहे हैं, दादी से प्यार अपार।। अपने प्यार भरे आँचल से, दिया हमें है साज-सम्भाल। यही कामना हम बच्चों की दादी जियो हजारों साल।। |
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जन्मदिन,
शुभकामनाएँ
Tuesday, September 20, 2011
"विद्यालय लगता है प्यारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
![]() मुझको अपना विद्यालय लगता है प्यारा।। नित्य नियम से विद्यालय में, मैं पढ़ने को जाता हूँ। इण्टरवल जब हो जाता मैं टिफन खोल कर खाता हूँ। खेल-खेल में दीदी जी विज्ञान गणित सिखलाती हैं। हिन्दी और सामान्य-ज्ञान भी ढंग से हमें पढ़ाती हैं।। कम्प्यूटर में सर जी हमको रोज लैब ले जाते है। माउस और कर्सर का हमको सारा भेद बताते हैं।। कम्प्यूटर में गेम खेलना सबसे ज्यादा भाता है। इण्टरनेट चलाना भी मुझको थोड़ा सा आता है।। जिनका घर है दूर वही बालक रिक्शा से आते हैं। जिनका घर है बहुत पास वो पैदल-पैदल जाते हैं।। पढ़-लिख कर मैं अच्छे-अच्छे काम करूँगा। दुनिया में अपने भारत का सबसे ऊँचा नाम करूँगा।। |
Monday, September 19, 2011
" चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मेरी एक बाल कविता को मेरे आग्रह पर मेरी मुँहबोली भतीजी अर्चना चावजी ने बहुत मन से गाया है! आप भी इस बाल कविता का रस लीजिए!![]() मीठा राग सुनाती हो। आनन-फानन में उड़ करके, आसमान तक जाती हो।। सूरज उगने से पहले तुम, नित्य-प्रति उठ जाती हो। चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से , मुझको रोज जगाती हो।। तुम मुझको सन्देशा देती, रोज सवेरे उठा करो। अपनी पुस्तक को ले करके, पढ़ने में नित जुटा करो।। चिड़िया रानी बड़ी सयानी, कितनी मेहनत करती हो। एक-एक दाना बीन-बीन कर, पेट हमेशा भरती हो।। मेरे अगर पंख होते तो, मैं भी नभ तक हो आता। पेड़ो के ऊपर जा करके, ताजे-मीठे फल खाता।। अपने कामों से मेहनत का, पथ हमको दिखलाती हो।। जीवन श्रम के लिए बना है, सीख यही सिखलाती हो। जब मन करता मैं उड़ कर के, नानी जी के घर जाता। आसमान में कलाबाजियाँ कर के, सबको दिखलाता।। |
Sunday, September 18, 2011
"मेरी गुड़िया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
खेल रही है यह तो बॉल।। पढ़ना-लिखना इसे न आता। खेल-खेलना बहुत सुहाता।। कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना। विद्यालय में नाम लिखाना।। ![]() रोज सवेरे मैं गुड़िया को, ए.बी.सी.डी. सिखलाऊँगी। अपने साथ इसे भी मैं तो, विद्यालय में ले जाऊँगी।। |
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