आज फेसबुक पर
डॉ. प्रीत अरोरा जी का यह चित्र देखा
तो बालगीत रचने से
अपने को न रोक सका!
काश्
हमारे भी पर होते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
पल
में दूर देश में जाते,
नानी
जी के घर हो आते,
कलाबाजियाँ
करते होते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
चढ़े
भाव हैं आज दूध के,
बिलख
रहे हम बिना दूध के.
मिलावटी
से सेहत खोते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
काश्
हमें खग प्रभू बनाते,
ताजे-ताजे
फल हम खाते,
भाग्यवान
होते हैं तोते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
हमको
भी प्रभु हंस बनाना,
सारे
गुण हमको सिखलाना,
शुद्ध
दूध के लिए न रोते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
जायेंगे
हम पार समन्दर,
प्रभू पंख दे देना सुन्दर,
हम
भी चिट्ठी ढोते होते।
नभ
में हम भी उड़ते होते।।
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Thursday, October 25, 2012
"प्रभू पंख दे देना सुन्दर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
नभ में हम भी उड़ते होते,
बालगीत
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"हमको भी प्रभु हंस बनाना,
ReplyDeleteसारे गुण हमको सिखलाना,
शुद्ध दूध के लिए न रोते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।"
बहुत सुन्दर । अच्छी कविता के लिए आपको और प्रेरणा-श्रोत डॉ. प्रीत अरोरा जी दोनों को बधाई।
- शून्य आकांक्षी
बहुत सुन्दर बाल गीत है भाई साहब .बहुत पया प्रयोग है -पल में दूर देश में जाते,
ReplyDeleteनानी जी के घर हो आते,
कलाबाजियाँ करते होते।
नभ में हम भी उड़ते होते।।
(काश !)/प्रभु
Sundar.
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