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Wednesday, July 31, 2013

"श्यामपट-अपनी बालकृति-हँसता गाता बचपन से" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')

अपनी बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
प्रस्तुत कर रहा हूँ-
"श्यामपट" पर 
SHIYAMPAT
तीन टाँग के ब्लैकबोर्ड की,
मूरत कितनी प्यारी है।

कोकिल जैसे इस स्वरूप की,
सूरत जग से न्यारी है।

कालचक्र में बदल गया सब,
पर तुम अब भी चमक रहे हो।
समयक्षितिज पर ध्रुवतारा बन,
नित्य नियम से दमक रहे हो।

बना हुआ अस्तित्व तुम्हारा
राम-श्याम बन रमे हुए हो।
विद्यालय हों या दफ्तर हों
सभी जगह पर जमे हुए हो।

रंग-रूप सबने बदला है
तुम काले हो, वही पुराने। 
जग को पाठ पढ़ानेवाले
लगते हो जाने पहचाने।

अपने श्यामल तन पर तुम
उज्जवल सन्देश दिखाते हो। 
भूले-भटके राही को तुम
पथ और दिशा बताते हो।

हिन्दी और विज्ञान-गणित
या अंग्रेजी के हों अक्षर। 
नन्हें सुमनों को सिखलाते
ज्ञान तुम्ही हो जी भरकर। 

गुण और ज्ञान बालकों के,
 मन में इससे भर जाता। 
श्यामपटल अध्यापकगण को
सबसे अधिक सुहाता।

3 comments:

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