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Saturday, May 9, 2020

बालगीत "गुलमोहर पर छाई लाली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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लाल रंग के सुमन सुहाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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रूप अनोखा, गन्ध नहीं है,
कागज-कलम निबन्ध नहीं है,
उपवन से सम्बन्ध नहीं है,
गरमी में हैं खिलते जाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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भँवरों की गुंजार नहीं है,
शीतल-सुखद बयार नहीं है,
खिलने का आधार नहीं है,
केवल लोकाचार निभाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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कुदरत की है शान निराली,
गुलमोहर पर छाई लाली,
वनमाली करता रखवाली,
पथिक तुम्हारी छाया पाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।। 
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7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. सुंदर सृजन सर ,गुलमोहर को देख खिलखिलाते बचपन का ही एहसास होता हैं, सादर नमन

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  3. बहुत ही सुन्दर बालगीत...
    वाह!!!

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  4. बहुत सुंदर सृजन।
    सुंदर बाल गीत।

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  5. बहुत सुन्दर बालगीत .

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  6. Thanks for sharing this with us...…this is really appreciating.

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