अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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थाली के बैंगन
गोल-गोल हैं, रंग बैंगनी,
बैंगन नाम हमारा है। सुन्दर-सुन्दर रूप हमारा, सबको लगता प्यारा है।। ![]() कुछ होते हैं लम्बे-लम्बे, कुछ होते हैं श्वेत-धवल। कुछ होते हैं टेढ़े-मेढ़े, कुछ होते हैं बहुत सरल। ![]() सभी जगह पर थाली के बैंगन ही बिकने आते है। चापलूस लोगों से तो, सब ही धोखा खा जाते हैं। ![]() इनका भरता बना-बनाकर, चटकारे ले-लेकर खाना। किन्तु कभी अपने जीवन में, खुदगर्ज़ों को मुँह न लगाना।। |
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Thursday, February 27, 2014
"थाली के बैंगन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हँसता गाता बचपन
Sunday, February 23, 2014
"स्वागतगान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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स्वागतगान
लगभग 29 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था।
इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही
इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों में भी इसको विशेष अवसरों पर गाया जाने लगा।
आप भी देखे-
स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
हमको सुर, तान, लय का नही ज्ञान है,
गल्तियाँ हों क्षमा हम तो अज्ञान हैं,
आपका आगमन, धन्य शुभ आगमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
अपने आशीश से धन्य कर दो हमें,
देश को दें दिशा ऐसा वर दो हमें,
अपने कृत्यों से लायें, वतन में अमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
दिल के तारों से गूँथे सुमन हार कुछ,
मंजु-माला नही तुच्छ उपहार कुछ,
आपको हैं समर्पित हमारे सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम!!
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Wednesday, February 19, 2014
"अल्मोड़ा की बाल मिठाई" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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एक बालकविता
मेरे पापा गये हुए थे,
परसों नैनीताल।
मेरे लिए वहाँ से लाए,
वो यह मीठा माल।।
खोए से यह बनी हुई है, जो टॉफी का स्वाद जगाती। मीठी-मीठी बॉल लगी हैं,
मुझको बहुत पसंद है आती।।
कभी पहाड़ों पर जाओ तो, इसको भी ले आना भाई। भूल न जाना खास चीज है, अल्मौड़ा की बॉलमिठाई।।
रक्षाबन्धन के अवसर पर,
यह मेरे भइया ने खाई।
उसके बाद बहुत खुश होकर,
मुझसे राखी भी बंधवाई।।
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हँसता गाता बचपन
Saturday, February 15, 2014
"मेरी साइकिल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"मेरी साइकिल"
मेरी साइकिल कितनी प्यारी।
यह है मेरी नई सवारी।।
अपनी कक्षा के बच्चों में,
फर्स्ट डिवीजन मैंने पाई,
खुश होकर तब बाबा जी ने,
मुझे साईकिल दिलवाई,
इसको पाकर मेरे मन में,
जगी उमंगे कितनी सारी।
यह है मेरी नई सवारी।।
अपने घर के आँगन में मैं,
सीख रहा हूँ इसे चलाना,
कितना अच्छा लगता मुझको,
टन-टन घण्टी बहुत बजाना,
हैण्डिल पकड़ो, पैडिल मारो,
नहीं चलाना इसको भारी।
यह है मेरी नई सवारी।।
बायीं ओर चलाकर इसको,
नियम सड़क के अपनाऊँगा ,
बस्ता पीछे रखकर इसको,
विद्यालय में ले जाऊँगा,
साईकिल से अब करली है,
देखो मैंने पक्की यारी।
मेरी साइकिल कितनी प्यारी।
यह है मेरी नई सवारी।।
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Tuesday, February 11, 2014
"टर्र-टर्र टर्राने वाला" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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बालगीत
"टर्र-टर्र टर्राने वाला"
टर्र-टर्र टर्राने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
कभी कुमुद के नीचे छिपता,
और कभी ऊपर आ जाता,
जल-थल दोनों में ही रहता,
तभी उभयचर है कहलाता,
पल-पल रंग बदलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
लगता है यह बहुत भयानक,
किन्तु बहुत है सीधा-सादा,
अगर जरा भी आहट होती,
झट से पानी में छिप जाता,
उभरी-उभरी आँखों वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
मुण्डी बाहर करके अपनी,
इधर-उधर को झाँक रहा है,
कीट-पतंगो को खाने को,
देखो कैसा ताँक रहा है,
उछल-उछल कर चलने वाला!
मेंढक लाला बहुत निराला!!
(छायांकनःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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Friday, February 7, 2014
"वेबकैम पर जालजगत में प्रकाशित पहली बाल रचना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"वेबकैम पर हिन्दी में प्रकाशित
पहली बाल रचना"
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वेबकैम की शान निराली।
करता घर भर की रखवाली।।
दूर देश में छवि पहुँचाता।
यह जीवन्त बात करवाता।।
आँखें खोलो या फिर मींचो।
तरह-तरह की फोटो खींचो।
कम्प्यूटर में इसे लगाओ।
घर भर की वीडियो बनाओ।।
चित्रों से मन को बहलाओ।
खुद देखो सबको दिखलाओ।।
छोटा सा है प्यारा सा है।
बिल्कुल राजदुलारा सा है।।
मँहगा नहीं बहुत सस्ता है।
तस्वीरों का यह बस्ता है।।
नवयुग की यह है पहचान।
वेबकैम है बहुत महान।।
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Saturday, February 1, 2014
"श्यामपट" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"हँसता गाता बचपन" से
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बालकविता
"श्यामपट"
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तीन टाँग के ब्लैकबोर्ड की,
मूरत कितनी प्यारी है।
कोकिल जैसे इस स्वरूप की,
सूरत जग से न्यारी है।
कालचक्र में बदल गया सब,
पर तुम अब भी चमक रहे हो।
समयक्षितिज पर ध्रुवतारा बन,
नित्य नियम से दमक रहे हो।
बना हुआ अस्तित्व तुम्हारा, राम-श्याम बन रमे हुए हो। विद्यालय हों या दफ्तर हों, सभी जगह पर जमे हुए हो। रंग-रूप सबने बदला है, तुम काले हो, वही पुराने। जग को पाठ पढ़ानेवाले, लगते हो जाने पहचाने। अपने श्यामल तन पर तुम, उज्जवल सन्देश दिखाते हो। भूले-भटके राही को तुम, पथ और दिशा बताते हो। हिन्दी और विज्ञान-गणित, या अंग्रेजी के हों अक्षर। नन्हें सुमनों को सिखलाते, ज्ञान तुम्ही हो जी भरकर। गुण और ज्ञान बालकों के, मन में इससे भर जाता। श्यामपटल अध्यापकगण को, सबसे अधिक सुहाता। |
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