"हँसता गाता बचपन" से
बालकविता
"सूअर का बच्चा"
गोरा-चिट्टा कितना अच्छा।
लेकिन हूँ सूअर का बच्चा।।
लोग स्वयं को साफ समझते।
लेकिन मुझको गन्दा कहते।।
मेरी बात सुनो इन्सानों।
मत अपने को पावन मानों।।
भरी हुई सबके कोटर में।
तीन किलो गन्दगी उदर में।।
श्रेष्ठ योनि के हे नादानों।
सुनलो धरती के भगवानों।।
तुम मुझको चट कर जाते हो।
खुद को मानव बतलाते हो।।
भेद-भाव मुझको नहीं आता।
मेरा दुनिया भर से नाता।।
ऊपर वाले की है माया।
मुझे मिली है सुन्दर काया।।
साफ सफाई करता बेहतर।
मैं हूँ दुनियाभर का मेहतर।।
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Sunday, May 18, 2014
"बालकविता-सूअर का बच्चा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Labels:
बालकविता,
सूअर का बच्चा,
हँसता गाता बचपन
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बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteइतना कर्मठ लेकिन फिर भी लोग नहीं चूकते गाली देने से
ReplyDeleteबहुत खूब खूबियां हैं सूअर में समझना चाहिए
"सुअर का बच्चा" कितना अलग विषय है और इस विषय पर लिखना आम बात नहीं है |
ReplyDeleteLajwaab. Hardik badhai.
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