अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
"मैना"
मैं तुमको मैना कहता हूँ,
लेकिन तुम हो गुरगल जैसी। तुम गाती हो कर्कश सुर में, क्या मैना होती है ऐसी??
सुन्दर तन पाया है तुमने,
लेकिन बहुत घमण्डी हो।
नहीं जानती प्रीत-रीत को,
तुम चिड़िया उदण्डी हो।।
जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर,
तुम आगे को बढ़ती हो।
अपनी सखी-सहेली से तुम,
सौतन जैसी लड़ती हो।।
लड़कर मार भगाती हो। प्यारे-प्यारे कबूतरों को भी, तुम बहुत सताती हो।। मीठी बोली से ही तो, मन का उपवन खिलता है। अच्छे-अच्छे कामों से ही, जग में यश मिलता है।। बैर-भाव को तजकर ही तो, अच्छे तुम कहलाओगे। मधुर वचन बोलोगे तो, सबके प्यारे बन जाओगे।। |
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Tuesday, May 6, 2014
"बालकविता-मैना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बालकविता,
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हँसता गाता बचपन
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Aapka jawaab nahi. Badhai.
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